मेरा शहर आवाज़े लगा रहा

मुझे सुनाईदेती हैंआवाज़े
पहाड़ के उस पार की
घाटी में गूंजती सी
मखमली ऊन से हवा
फंदा-दर फंदा
साँस देती हुयी
आवाहन करती हैं
जीने की जदोजहद से निकलने का
.
सपने देखतीहूँ
मैंअक्सर आजकल
हरी वादियों के
घंटाघर कीबंद घडियो में
अचानक होते स्पंदन के
बाल मिठाई के
बंदटिक्की और
खिलती हुयी धूप के
कितना मुश्किल होता
विस्थापन
पहाड़ से कंकरीट के
जंगल में आकर रहना
एकसाथ पाकर अपनों को
अपने को ही खोदेना
चार माले के एक फ्लोर पर
पांच कमरों वाले घर में
मुझे यादआते
अपने २५० गमले
डेहलिया गुलदाउदी
टाइल्स वाले पक्के आंगन में
खिलती कच्ची धूप
दुधिया मक्का
उस पर सर्दी का रूमानी मौसम
हो ना हो कहीऐसा
मुझे
मेरा शहर आवाज़े लगा रहा हो
रुआंसा   सा 
उदास होकर....

आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-12-2015) को "सुबह का इंतज़ार" (चर्चा अंक-2195) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सपने देखतीहूँ
    मैंअक्सर आजकल
    हरी वादियों के
    घंटाघर कीबंद घडियो में
    अचानक होते स्पंदन के
    बाल मिठाई के
    बंदटिक्की और
    खिलती हुयी धूप के
    .. बहुत सुन्दर ..

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  3. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 05 नवम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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