मंगलवार, 27 जनवरी 2015

स्त्री !!

*****स्त्री *****

सिमटा होता हैं पूरा घर
फिर भी
और समेट कर रखने कीचाह
रखती हैं
स्त्री !!

.. बिखरा होता हैं
उसका वजूद
घर के कोने कोने में
और परायी लड़की होती हैं
स्त्री !!

जिन्दगी जितने भी
गमो में डुबो दे
भीगी आँखों से
हंस कर बोलती हैं
स्त्री !!

कही तन ढकने को नही
कही तन ढकना नही
उम्र कोई भी हो
सेक्स का सामान होती हैं
स्त्री !!

उम्र भर बुनती हैंजाल
अपने आशियाने का
एक मेहनतकश
मकड़ी सी होती हैं
स्त्री !!

धरती सी सह लेती हैं
प्रसव की पीड़ा को
अकेले ही भीतर
तब माँ होती हैं
स्त्री !!

जिन्दी मारी जाती हैं
कोख में , बेमौत ही
न बहन , न माँ , न बेटी
तब जहन में कहा होती हैं
स्त्री !!
नीलिमा शर्मा निविया



आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

चल मन अब उठ

चल मन अब उठ !!! 
कब तक आंसू बहायेगा 
एक दिन कोई कहेगा 
धीरज रखो 
अगले दिन 
हुह!!
कहकर
आगे बढ़ जाएगा
आंसू तेरे
अपने हैं
दामन भी भीगा सा
चुन्नी के कोने से
चुपके से
पोंछ के
आँखे
समय भागता जायेगा
चल मन अब उठ !!!
कब तक आंसू बहायेगा

आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु