रविवार, 24 नवंबर 2013

सपने झूठे होते हैं सुबह के.........







माँ !! 
रात मैंने एक सपना देखा 
तुम हो !! आँगन में सोयी सी 
और पास तेरे एक सफ़ेद कपडे में बैठी 
औरत जोरो से हंस रही हैं बेहताशा 
और मैं गुस्से से देख रही हूँ उसकी और 
और कहना चाह रही हूँ जैसे 
चुप रहो ना ... माँ सो रही हैं 
पर तुम मुझे इशारे से कहती हो 
चुप रहने को 
और मैं कुढ़ रही हूँ 
तुम्हारे ही दिए गये 
अपने नीले दुप्पटे को 
बार बार उंगुली पर लपेट'ते हुए 
और अचानक मेरा रुदन और
तुम्हारी सिसकियाँ एकाकार हो जाती हैं 
और उसकी आवाज़ में कही दब जाती हैं 
उस सफ़ेद कपड़ो वाली की हंसी 
और मैं ...............
लिपट जाती हूँ तुमसे कसकर 
कभी ना अलग होने के लिय 
और अचानक आँख खुल जाती हैं मेरी 
भोर का सूरज लालिमा लिय 
आने को तत्पर आसमान में 
और मैं पसीने से तरबतर 
इस सर्दी में 
आँखों के कोरो से बहते आंसुओ के संग !!
माँ !! सुनो ना ...तुम ठीक हो ना 
प्लीज़ कह दो 
सपने झूठे होते हैं
सुबह के................नीलिमा शर्मा निविया
















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पाता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती दिखायी दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

tum -hum





एक दिन
तुझ बिन


सुबह शाम 
तुम्हारा नाम


चाँद रात
तुम्हारी बात


जान मेरी
सदके तेरी

दिल बेक़रार
तेरा इंतज़ार



रोया दिल
मुझे मिल

कब मिलोगे
क्या कहोगे ..........नीलिमा शर्मा


.
.
...
..




















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

विवेक हीन पल

कभी कभी बेवज़ह 
खलबली सी मची रहती हैं 
भीतर 
और 
गुस्सा 
बिना कारन 
अपना अधिकार 
जमा लेता हैं गहरे तक 
अनचाहे ही 
जुबान से फिसलते हैं 
वोह लफ्ज़
जो दिल में नही होते
और हम
उम्र भर धोते हैं
उन लफ्जों का
बरपाया कहर

यह कहर सिर्फ
अपनों पर ही क्यों बरसता हैं
दिल सबका नर्म लहजे को तरसता हैं
शब्द जहर बुझे से आग लगाते हैं
हम कहना कुछ चाहते हैं
परन्तु कह कुछ जाते हैं

कमबख्त उलझने
सोच को कुंठित कर
गाँठ लगा देती हैं
और सडांध मच जाती हैं भीतर
कुछ ऐसी बातो की
जो भीतर भीतर
चिंगारी सी
जलती हैं
और भभक उठती हैं
आग बेमौके
और
जल जाता हैं उस में
वजूद सबका
किसी के होने का
किसी के क्यों न होने का

आक्रोश विद्रोह से
तमतमाया जीव
तब भूल जाता हैं
उम्र भर को
कि उम्र भर महसूस होगा
यह एक उम्र के छोटे से पल का
विवेकहीन होना
बस अपना आप खोना

.......................................

नीलिमा शर्मा

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

उम्मीद

उमीद !!!
कम से कम
तुमसे !!
ऐसे नही थी
मुझे
तुमसे 
उम्मीद ही नही थी
फिर भी
ना जाने क्यों
एक आस
विश्वास की
तुमसे लगाये रहती हूँ
दोस्ती के मायने
तुम भूल जाओ
वादा था न
मेरा
उम्र भर
निभाने का
कम से कम
तुम्हारी
उम्मीद तो
पूरी होगी
................................ नीलिमा शर्मा

सोमवार, 18 नवंबर 2013

यादे !!!

कल मेरे छोटे भाई  समान मानव  शिवी मेहता  ने मुझे इनबॉक्स  कुछ लिखा  कि दीदी देखो कैसा लिखा  हम दोनों अक्सर इस तरह अपना लिखा एक दुसरे को दिखाते  रहते हैं
 फिर  क्या जुगलबंदी हुयी आपकी नजर पेश हैं ..............
~~

तुमने सुना तो होगा
जब चलती हैं तेज़ हवाएं
फड़फड़ा उठता है
सोया हुआ शजर
बासी से कुछ मुरझाये हुए से पत्ते
छोड़ देते हैं साथ
दिये कई तोड़ देते हैं दम
जब चलती हैं तेज़ हवाएं
बर्बाद हो जाता है सब कुछ
इक रोज़ इक ऐसे ही
तेज़ हवा में
बुझ गया था -
मेरा भी इक रिश्ता....!! मानव मेहता शिवी
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न तेज हवा चली थी /
न कोई तूफ़ान आया था /
न हमने  कोई आसमा सर पर उठाया था /
 हम जानते  थे ना /
हमारा रिश्ता नही पसंद आएगा /
हमारे घर के ठेकेदारों को /
जिनके लिय अपने वजूद  का होना लाजिमी था /
 हमारी कोमल भावनाओ से इतर /
और हम दोनों ने सिसक कर  /
भीतर भीतर चुपके से /
 तोड़ दिया था अपना सब कुछ /
बिना एक भी लफ्ज़ बोले /
मैंने तेरा पहना कुरता मुठी मैं दबा कर /
 तुमने मेरी लाल चुन्नी सितारों वाली /
जो आज भी सहेजी हैं दोनों ने /
अपने अपने कोने की अलमारी के /
भीतर वाले कोने में........... नीलिमा शर्मा निविया
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मुझे याद तो नहीं शोना
पर जब से तुम गयी हो
लगभग हर रात
अपनी अलमारी खोल कर
देखता हूँ उस
लाल रंग के
सितारों वाले दुप्पट्टे को
जो तेरी इक आखरी सौगात
मेरे पास छोड़ गए थे तुम
तुम नहीं मगर तुम्हारा एहसास
आज भी उस दुप्पट्टे में
वाबस्ता है...
मैं आज भी इसमें लिपटी हुई
मेरी मोहब्बत को देखता हूँ...
मुझे याद तो नहीं शोना
पर जब से तुम गयी हो
ज़िन्दगी घुल सी गयी है लाल रंग में मेरी... Manav Shivi Mehtamanavsir.blogspot.in
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 तुम्हारा वोह सफ़ेद कुरता
आज भी रखा हैं कोने में  अलमारी के
 जहाँ मैं सहेजती हूँ यादे अपनी
 और जब  अकेली होती हूँ न
 अपने इस कोहबर में , तो
 पहन कर वोह सफ़ेद कुरता
 महसूस करती हूँ
 तुम्हे अपने बहुत करीब
 तुम्हारी आखिरी सफ़ेद निशानी
 जो छीन कर ली थी मैंने तुमसे
उसमी वोह अहसास  भी जुड़े हैं
 तेरे - मेरे
 जो हमने जिए तो नही
 फिर भी कई बार महसूस जरुर किये हैं
    सुनो शोना
 अब मेरी जिन्दगी  पहले जैसे
  रंगीन नही रही
 शांत रहना सीख लिया मैंने
 तेरे कुरते के सफ़ेद रंग की तरह .................... नीलिमा  शर्मा


 कृपया बताये ......... हम   ने लफ्जों  से कैसे  रंग भरे हैं इस शब्द चित्र मैं ....................

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

आंसू के चंद कतरे

जो  कहा नही जाता
लबो से
 उसे अक्सर रोया जाता हैं
दिल से
 और बहाया जाता हैं
आँखों से
 लफ्ज़ होते हैं
 हर बूँद में
 आंसू की
 और लोग अक्सर
 उनको छिपाते हैं
 सबसे
खासकर
अपने अपनों से
 क्युकी
 जिन्दगी के
 रहस्य
या तो लब
बयां करते हैं
 या फिर
 आंसू के चंद
कतरे  ..........नीलिमा शर्मा