मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

बाल मजदूर


हम ढोते हैं ईंटे तुम्हारे मकानों के लिए
रोटी के टुकडो और चंद कतरों तन के लिए
हमारे आंसू भी बिखरे हैं इसकी नींव में
पैसा बहाते हो तुम हमारे पसीने के लिए
चाहे जितना शोर मचहा लो संसद से सडको तलक
लोग हमको रख ही लेंगे नौकर पैसा बचाने के लिय
मेरी बहना भी रोती हैं जब बोझा सर पर ढोती हैं
गुद्दिया भी उसकी तड़पती हैं खेल खिलाने के लिए
हम भी हक चाहिए रोटी/ कपडा और पढाई का
क्यों पाया जन्म हमने
बाल मजदूर बन जाने के लिए....Neelima sharma

तस्वीर क्या बोले

" तस्वीर क्या बोले " ग्रुप में चार चित्र दिए गये थे आदरणीय प्रतिबिम्ब जी द्वारा जिस पर एक कविता लिखनी थी जो उस चित्र पर सटीक हो ..... परन्तु विशेष बात यह थी के सभी महिलाओ को पुरुष नजरिये से उस चित्र को देखकर भाव लिखने थे और सभी पुरुष मित्रो को
नारी दृष्टि से उन चित्रों को देख कर भाव लिखने थे . मैंने भी वहां पर चित्र देखकर एक पुरुष नजरिये से अपने भाव लिखे थे सभी मित्रो ने वहां पर बहुत सुन्दर ढंग से अपने अपने भावो का संप्रेक्षण किया . निर्णायक डॉ सरोज गुप्ता जी ने पुरुषो के भावो को एवं गोविन्द प्रसाद बहुगुणा जी ने महिलाओ को भावो को पढ़ा और महिला वर्ग में मेरी कविता को एवं पुरुष वर्ग में प्रतिबिम्ब जी को उत्तम घोषित किया हैं

मैं तहे दिल से " तस्वीर क्या बोले " ग्रुप के सभी सदस्यों धन्यवाद करती हूँ . मित्रो आप भी पढ़िये उस तस्वीर को देखकर एक पुरुष नजर से मेरे मन के भाव कैसे

थे ....आप सबका शुक्रिया आप सबकी हौसला अफजाई से ही अच्छा लिखने एवं लिखे में सुधार की प्रेरणा मिलती हैं ...शुक्रिया ...नीलिमा

एक ज़माना था यारो !
महारानी लक्ष्मी बाई का
मर्द बनकर लड़ गयी थी
पर नारी जैसे लज्जा भी थी

एक ज़माना था यारो
राजे रजवाडो की रानियों का
खूबसूरती/ सादगी कमाल की
शर्म-ओ-हया की लाली भी थी

एक ज़माना था यारो
मेरे गाँव में बसी ग्वालानो का
हाथ में हसिया दुसरे में पल्लू
पर कर्मठता गजब की थी

अब जमाना हैं यारो
सनी लिओन और मल्लिका का
न लज्जा हैं , न शर्म न कर्मठता
बस बेहूदगी बेहयाई बेहिसाब की हैं

कैसे कहदेते हो यारो अब
पुरुष बेइमान हो गये
माँ - बहन की तरह कैसे देखे
किस्सा कहानी भी अजब सी हैं ....Neelima Sharrma

रविवार, 28 अप्रैल 2013

नाराज हैं मुझसे

आजकल नींद  नाराज हैं मुझसे 
 सिरहाने भी  अब कोसने लगे हैं 
 
  वास्ता देते हैं मुझे  तुम्हारी बाहों का 
 सपने भी अब मुझे टोकने लगे हैं 


 सवालों का  ढेर   लगा हैं  इर्द गिर्द 
जवाबो में ताने चुभोने  लगे हैं 


 तन्हायी का आलम न पूछ सजना 
आंसू भी आँखों के कोर भिगोने लगे हैं 


 
नाराज हैं  मुझसे मैं जानती हूँ यारा 
 सनम जब से मेरे   पीठ मोड़ कर सोने लगे हैं 

शनिवार, 27 अप्रैल 2013

आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की


आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की
 कुछ मुठ्ठी ख्याल तुम ले आना
 कुछ मेरे आँचल मैं हैं
 आओ मिलकर बुने एक नज़्म
 तेरे मेरे ज़ज्बातो की
 आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की

याद हैं तुमको वोह पहली बरसात
 भीगे तन-मन   भीगी कायनात
 कुछ तुमने कसकर थामा
 कुछ ढीली पकड  मेरे हाथो की

आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की

याद हैं तुमको वोह ठिठुरती  सर्दी
 धुप का टुकडा  और हम दोनों
 मूंगफली के छिलके और   अनकही बाते
 बन गयी थी एक किताब हमारे ठाहको की

आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की

 याद हैं तुमको वोह तपती दोपहरी
 छज्जे के नीचे   हम दोनों और पानी का गिलास
 गर्मागर्म तब बहस हुए थी  टूट रहे थे रिश्ते खास
 पर डोर कच्ची नही थी तेरे मेरे रिश्ते के धागों की

आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की
.
 चाहे कितने मौसम बदले
   कितने ही बादल  बरसे
 गर्मी जितना हमें जितना सता ले
 सर्दी हमको कितना ठिठुरा ले
 लिखते राआहेंगे ,लिखते रहे हैं
 नज़्म आपने ज़ज्बातो की

 आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

नन्ही चिरैया

हौले हौले कदमो से चलती 
मैं नन्ही चिड़िया 
तेरे घोंसले की 

उड़ना हैं मुझे 
छूना हैं अनंत
आकाश की ऊँचाई को

मेरे नन्हे पंखो में
परवाज नही
हौसला हैं बुलंदी का

भयभीत हैं अंदरूनी कोन
आकाश भरा हुआ हैं
बड़े पंखो वाले पक्षियों से

सफ़ेद बगुले ही अक्सर
शिकार करते हैं
मूक रहकर

माँ मैं

नन्ही चिरैया
कैसे ऊँचा उड़ पाऊंगी
इन भयंकर पक्षियों में

मैं कैसे पहचानू ?
यह उड़ा न के साथी
या दरिन्दे मेरी जात के

आसमा से कहो
थोडा ऊँचा हो जाये
मुझे उड़ना हैं अन्तरिक्ष तलक........Neelima

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

माँ तुम्ही बताओ मेरा क्या दोष था


गुडिया !!!!
तूने छोटे कपडे पहने थे क्या?

या तुम देर रात घूम रही थी

अपने पुरुष मित्र के साथ

या

तुम्हारे हाव भाव

और हरक़ते

बना रहे थे कामुक

तुम्हारे अंगो को


ऐसा कुछ भी तो
नही किया तुमने
मेरी बच्ची !


फिर क्यों उस मर्द
नामक कीड़े की
मर्दानगी जागी


सवाल परेशान किये हैं मुझे

कैसे सिखाऊ मैं अपनी बेटी को
ऐसे दरिंदो को पहचान'ना

तुझे तो किसी ने
मिर्च की पुडिया भी
नही थमाई होगी !!!! neelima
 



2...........कुछ भी नही होगा यूँ रोने से
तैयार रहो
अब गुडिया को खोने से

मातम मनाओ या
मोमबत्ती जलाओ

हल होगा बस मसला
खुद के सभ्य होने से


आग लगा दो दुनिया को
या शोर मचा लो संसद में
बस गर्व न करो तुम
खुद के मर्द होने में

कुछ भी नही होगा यूँ रोने से
तैयार रहो
अब गुडिया को खोने से ........नीलिमा

3...
हद्द है न !!!!
मैं क्यों स्यापा कर रही हूँ पहले निर्भय के साथ जो हुआ तब भी ,
आज गुडिया के साथ हुआ तब भी ....... मेरी कोण सी कोई बेटी हैं जो मैं स्यापा करू . जो मैं असुरक्षित महसूस करू .हुह्ह्ह .


क्या करू पत्थर नही हूँ मैं !!!! और चाहती हूँ जोर से चीखना !!!!!!!!! आखिर क्यों!!!!! और कब तक !!!!!!!!!!
 —



मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

( उसकी वोह जाने ..मेरी मैं ).

एक फोटो महबूब की 
कुछ सांसे महकी
कुछ धड़कन बहकी 
कुछ नशा
अनकहे
अनबोले
लफ्ज़ का

एक छुवन
कवारे जज्बात की
और जाम भर गया
लबालब प्यार से

और
मन भर चला
उड़ान
क्षितिज तलक

सुवासित हर कोना
देह /दिल का

घूँट घूट कर
नशा करते जाम में
फुसफुसाती उसकी
कुछ नज़्मे

नही पता था
छु जाएगा , उसकी
नशीली आँखों का
जाम
भिगो जायेगा मुझे
इतने करीब से
कि
उसकी सरगोशियां
भर देगी संगीत
रूह में

और देर तक जलता रहेगा
वजूद मेरा
उसके नशे में

लो मैंने जाम तोड़ दिया
अतीत का
नए की तलाश में

और वोह ???

( उसकी वोह जाने ..मेरी मैं )......नीलिमा

रविवार, 14 अप्रैल 2013

घर की कन्या तो रूठी हैं !!!!!!!

आखिर मार  ही दिया न एक झापड़ !!!

 नही चाहता था  अपमान करना 
छोटी सीउस  चाहत का  


नवरात्र हैं , कन्या पूजनी हैं !मुझे !!


 पर कैसे सह जाता  भगवती प्रसाद 

 बेटी का पराये मर्द  से रातो को 
 लुक्क छिप कर  छत  पर मिलना 


 कैसे जिमायेगा अब वोह कन्या 


अबके अष्टमी पर ????

घर  की कन्या तो रूठी हैं !!!!!!!

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

तन्हाई

सुनो!!!
यु तनहा रहने का 
शउर 
सबको नही आता 
तनहा होना अलग होता हैं 
अकेले होने से
और
मैं तनहा हूँ
क्युकी तुम्हारी यादे
तुम्हारी कही /अनकही बाते
मुझे कमजोर करती हैं
लेकिन
तुम्हारी हस्ती
मेरे वजूद में एक हौसला सा बसती है
परन्तु
यह

तन्हाई
सिर्फ मेरे हिस्से में ही नही आई हैं
तेरी हयात में इसने जगह बनायीं हैं
सुनो!!!
यु तनहा रहने का
शउर
सबको नही आता !
तनहा होने में
घंटो खुद को खोना होता हैं
रोते रोते हँसना होता हैं
दामन में भरे हो चाहे कितने कांटे
फूलो की तरह महकना होता हैं.......