गुरुवार, 30 जुलाई 2015

मौन लफ्ज़

बुत बन गयी
जिन्दा  ही
अपनों के आगे

गुनाह हो गये
उसके मौन  लफ्ज़
और गर्त हो गयी
जिन्दगी

ख़ामोशी
अब हुनर   जो नही रही
शौंक बन रही हैं
 नीलिमा शर्मा






आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

इबारत पढना कभी मेरे दिल की

मुचड़े कागज पर लिखी इबारते
कभी पढ़ी हैं क्या
किसी ने ?
आंसुओ से सरोबार
हर लफ्ज़ होता हैं 
सीली सी महक
अन्दर तक भिगो देती हैं
साफ कागज पर लिखे शब्द
अक्सर
छुपा लेते हैं
अपने भीगे अहसास
झूठ और कृत्रिम
लबादा पहन कर
आज मेरे चारो तरफ बिखरे हैं
मुचड़े कागज
आप पढ़िए न
सफ़ेद कोरे कागज पर लिखे
मेरे कुछ लफ्ज़ ..............................
नीलिमा शर्मा Niviya















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु