बुधवार, 23 मई 2012

मौन इक भाषा है जो
बोली जा सकती है
अपनी भावभंगिमाओ से
अपने स्मित अधरों से
अपने अंन्खो से
अपनी देह्चाल से
कोण कहता है तुम मौन हो
तुम बोल रहे हो
अपनी शरारती आँखों से
अपनी होंतो पर थिरकती हसी से
अपने अलबेली चाल से
बच्चा कितना भी चुप रहे
माँ
पढ़ ही लेती है उसके मन की हर भाषा .......................:))))

में धुप हु
मुझे बिखरना है
सोना बनकर
इस दुनिया में
मत कैद करो मुझे
अज्ञान क अंधेरो में
मुझे जीना है
चांदनी बनकर
लिखना है अपना नाम
आसमान की उचाई पर
मुझे जीने का हक दो
मुझे पढने का हक दो
मत बंधो अभी रिश्तो के
अनचाहे बन्धनों में ...............................
ज़रा पाँव तो जमने दो .
. कुछ दूर तो खुद चलने दो
रिश्ते भी ओढूगी ..
और छांव जी भर दूंगी ..
बस कुछ पल तो सम्हलने दो..
ये दूरियां तय करने दो

(last 6 lines by Neetta Porwal)
 
मेरे मन है कितना सच्चा मेरे मन है कितना सच्चा
रहता है इस में एक बच्चा
बचपन कब का छूट गया
केशोर्य भी तो रूठ गया
आज भी यह मचलता है
जब भी होने लगती है जिन्दगी बदरंग
करने लगता है हुढ़दंग
...........
सपने अपने अब अपने कहा रहे
अपने भी अपने अब अपने कहा रहे
में वोह भी नही जो रही थी कभी
बदल गयी है दुनिया मेरी सभी
आँखे बंद करके देखा करती हु नवरंग
जब मेरा बचपन करता था हुढ़दंग
.............
जी लेते है हम जिन्दगी अपनी
बच्चे की मानिद
जब पाते है गोदी में
एक अपना सा बचपन
खुश होकर तालिया
बजा कर
कूकता है तब
मेरे अंदर का बच्चा
पूरे होते है सपने उसके सतरंग

मेरे अंदर का बच्चा
करता है तंग

अंदर ही अंदर करता है हुड़दंग ।:))))))))))))))))))))))