कान
तरस रहे हैं
सुन'ने को
कब आओगी ?
छुट्टियां हैं न बच्चो की
आजकल गर्मी तो होने लगी हैं
फिर भी , मेरी आँखे ठंडी करने आ जाओ
मन तरसता हैं मेरा
देखने को बच्चो को
उनको तो मिलवा जाओ
आम तरबूज़ और खरबूजे
सबके साथ अच्छे लगते हैं
घर में रौनक आती हैं
जब बेटो के बच्चो संग
तेरे बच्चे हँसते हैं
कितना भी तू कॉन्टिनेंटल मुगलई बना ले
आज भी भाते बच्चो को मेरे हाथो के पराठे
अब ना मत कहना नही सुन'नई मुझे तेरी बातें
माँ का घर हैं तेरा , पूरे से हक़ से आजाओ
ना जाने कितनी उम्र हैं बाकी
कुछ दिन मन का अपने कर जाओ
फिर घर होगा धागे सा
ना तेरा न मेरा होगा
रिश्ते होंगे नाते होंगे
दीवार पर तस्वीर सा मेरा डेरा होगा
जितना धागा होगा उतने रिश्ते कच्चे होंगे
बुलाकर सब बुलाये भी तो माँ से नही पराठे होंगे
कच्ची पक्की बातें होंगी सोँधपन सा गायब होगा
अब तो समझ ले बिटिया रानी
तब यह घर न तेरा होगा
अगली गर्मी रहूँ न रहूँ
इक बार तो मार ले फेरा
फिर तो सब रिश्ते होंगे
न घर होगा तेरा
न माँ रहेगी ना बाप रहेगा
क्या पता बदल के रिश्ता
कहदे बेरुखी से
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु