मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

अंकुरण

.सब्ज खवाब से सींच कर 
मैंने बोया हैं बीज 
नयी आशाओ का 
कोसी कोसी धूप 
तुम्हारी आगोश की 
रिमझिम रिम झिम 
ख़ुशी वाले आंसू की 
बरसात 
तुम्हारे नरम से 
लफ्जों का स्पर्श
काफी होंगे
इसके अंकुरण के लिए

सुनो तुम आओगे न
मेरे खवाबो की जमीन पर
मेरे अहसासों को पल्लवित करने
मेरी सब पुरानी भूलो को विस्मृत करके ...........

हमें नव-प्रेम का सृजन करना है ..Neelima Sharma

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

अंदाज़ से

 अँधेरा  घना 
रात गहरी 
 बरसती बूंदे 
 सर्द हवाए 

 सुगनी  
सोयी  थी 
 चौखट पर 
 झोपड़ी की 
 इंतज़ार में 


 किसनू 
 सो गया 
 हाथ सेक कर 
 उसकी देह से 
 खुद को पाकर 
 नजर -अंदाज़ सा 


 सुगनी 
 लगा रही हैं 
 मलहम 
 अपनी पीठ 
 और कंधे  पर 
 अंदाज़ से  ....................नीलिमा 

आखिरी कविता

आसमान का नीलापन आँखों 
में भरकर 
एक सुंदर सा विचार / दृष्टि 
रच कर 
कुछ ख़ुशी का रंग लेकर 
कुछ उदासी का जल लेकर 
बनाओ एक चित्र
जब तुम झल्ली (पागल)
बन जाओ प्यार में
और भर रंग ह्रदय के सारे
एक ख्याल जो छू जाये
एक लम्हा जो गुजर जाये
एक बूँद जो बरस जाये
एक आह जो तड़प जाये
आखिरी रंग हो जो
इस धरा का
आसमा पर

ऐसे रंग तुम
चित्रित करना
एकाकार से
जैसे लिखी हो
किसी वियोगी ने
अपनी आखिरी कविता

किसी के प्यार में ..........नीलिमा शर्मा

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

आज तो रविवार है ...

आज रविवार हैं
छुट्टी की बहार हैं
आज रोटी खुद बनाओ
सब्जी की जगह अचार हैं 

अब से देर से मैं उठूँगी
सबसे पहले अखबार मैं पढूंगी
नाश्ता अपना खुद बनाओ
मेरा भी तो आज त्यौहार हैं

चाहे किसी को घर बुलाओ
चाहे किसी के घर जाओ
सज- धज के हड़ताल का
मेरा भी आज विचार हैं

बच्चो का होम वर्क हो या
ऑफिस का पेंडिंग वर्क
घर के साथ खुद निपटाओ
आज मेरी सरकार हैं

6 दिन की मेरी नौकरी
घर में करती सबकी चाकरी
मिलती नही मुझे कभी भी
जरा भी पगार हैं

आज तो रविवार है ....नीलिमा

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

धरती माँ !!

धरती माँ !!
आधी से ज्यादा तुम पानी से भरी हो 
देखने में कितनी हरी हरी हो 
फिर भी पानी को तरसते हैं प्राणी !!!

धरती माँ!!
गर्भ में तुम्हारे अनेको रतन 
प्रसव पीड़ा भी असीम तुम्हे 
फिर भी कुपोषण के शिकार तुम्हारे बच्चे!!!

धरती माँ!!
तुम कितनी धीर सहनशील 
सहती तुम हर अत्याचार उग्र 
फिर भी मानव इसपर कितने व्यग्र!!!!!

धरती माँ !!!
तुम पालती सारी संतान 
नही मानती खुद को महान 
फिर भी भूखे मारते माँ- बाप को बच्चे!