शनिवार, 28 नवंबर 2015

अर्थ पहचानती रही 
अनकहे शब्दों के 
दर्द की तासीर ही 
गर्म इतनी रही 
लहू ठंडा हो गया 
बिना दवा लिए हुए
शिद्दत ही इतनी गहरी थी
उसके इश्क़ की
मैं उसको अपना मानती रही
बिना बंधन के 
नीलिमा शर्मा 






आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

सोमवार, 2 नवंबर 2015

जब मिलती हैं आहट किसी के आने की


खुशिया बिखर जाती हैं
गुलाबी गालो पर 
जब मिलती हैं 
आहट 
किसी के आने की 
उसका ( शायद ) 
अपना हो जाने की 

सपने जो देखे थे 
अंतर,मन में 
स्पंदन जो हुए थे
तन में
आ जाती हैं बेला
शर,माने की

अपने अपनों को
छोड़ देना
नए रिश्तो को
जोड़ लेना
प्रीत अपनी
लगने लगती हैं
अनजाने की

आँखों का शराबी हो जाना
खयालो में
खुद ही हाथ फेरनाअपने
बालो में
चाह होती हैं उसको
दिल की धरकन सुनाने की

खुशिया बिखर जाती हैं
गुलाबी गालो पर
जब मिलती हैं
आहट
किसी के आने की
उसका ( शायद )
अपना हो जाने की .....नीलिमा शर्मा















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

लड़की होना आसान नही होता


कैसे घूरता हैं वोह नुक्कड़ पर खड़ा लड़का
घर से स्कूल जाती नव्योवना को
नीली चुन्नी को देह पर लपेटे
छिपाने की कोशिश में
अपने अंग-प्रत्यंग को
अक्सर मिल जाती हैं उसकी नजर
उन घूरती नजरो से
और टूट जाता हैं
उसके साहस का पहाड़
और उसकी देह
लगा देती है दौड़
पञ्च मीटर की
सेकंड के पांच सोवे हिस्से में
उसके बाद घंटो लगते हैं
उसे सहेजने में
समेटने मेंअपनी बिखरी सांसो को
कल भी तो होगा न
नुक्कड़ पर खड़ा लड़का
और एक बार फिर .....
बिखरेगी उसकी साँसे
दौड़ लगाएगी उसकी कमजोर टाँगे
लड़की होना आसान नही होता ..............
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आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

मोहताज

धुंधला रहे हैं किताबो में लिखे हर्फ 
कांप रहे हाथ कटोरी को थामते हुए 
लकीरे बना चुकी हैं अपना साम्राज्य 
पेशानी और आँखों के इर्द गिर्द 

यह उम्र दराज़ होना भी 
कितना दर्द देता हैं 
कभी कहा जाता हैं तुम आराम करो 
दुनिया दारी बहुत कर ली 
कभी कहा जाता हैं बहुत 
जी लिया अपने मन का
अब हमें भी जीने दो

उम्र के इस मोड़ पर
जरुरत भी होती हैं
इस गैर जरुरी देह की

हर रिश्ते में एक पारदर्शी
दीवार दिखती हैं
अपनी ही जाई ओउलाद
परायी दिखती हैं

घर की देख रेख में
घर को बनाने में
एक उम्र गुजार देने वाले
यह बूढ़े लोग
मोहताज हो जाते हैं
सिर्फ एक कोने के लिय
अपने मन के कोने के लिय ..................................... नीलिमा शर्मा








आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

मढ़ीयो के जलते दिवे

उम्र  कब की  बरस कर खामोश  हो गयी 
 आँखे भी मुस्कुराती  आखिर कब तलक  
  मन था जो भीग कर  मिटटी    गीली सा 
 नफासत से जीती  रही  लाल ओढ़नी  तब तलक  


  सफ़ेद  रंग था  सिरहाने बिछा हुआ सा 
 आसमा स्याह  भी नीला रहता कब तलक 
  उसकी चूड़ियाँ भी  खनकती  कैसे  अब 
  सिलवटो  सी  रहती  चादर     जब तलक 


 खुशनुमा  पलो को भर बुक्कल में  अपनी 
  सुनहरी  रेत सा झरने से बचाती  कब तलक 
 शिकवे भी करती तो कब और  किस'से करती   
 उसकी दुआ जब कभी पहुँचती नही रब तलक 


  मढ़ीयो  के जलते दिवे  के चारो तरफ 
   फेरे भी कितने लगाती और कब तलक 
 रूठ्या  माहि   भी जा बैठा    ऊँचे बनेरे 
     आवाज़  भी  नही  जाती  सिसकियो की सब   तलक 



आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

सूना सूना सा


१.  आँगन कितना सूना सा हैं 
 हर घर का 

कभी यहाँ सुबह सवेरे चहकती थी 
चिड़ियाँ 
 और बाबा उनको दाना खिलाते थे 
 हु हु करते 

 और पायल की रुनझुन करती 
 बेटियाँ 
 आस पास किल्कारिया मारती थी 

 अब   आँगन में चिड़ियाँ नही आती 
दाना चुगने 

 न अब आँगन मैं किलकती हैं 
बेटियाँ 


 वज़ह कोई भी हो 
 उदास  तो आगन हैं ना 
सूना सूना सा .


















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु