अर्थ पहचानती रही
अनकहे शब्दों के
दर्द की तासीर ही
गर्म इतनी रही
लहू ठंडा हो गया
बिना दवा लिए हुए
शिद्दत ही इतनी गहरी थी
उसके इश्क़ की
मैं उसको अपना मानती रही
बिना बंधन के नीलिमा शर्मा
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु
अनकहे शब्दों के
दर्द की तासीर ही
गर्म इतनी रही
लहू ठंडा हो गया
बिना दवा लिए हुए
शिद्दत ही इतनी गहरी थी
उसके इश्क़ की
मैं उसको अपना मानती रही
बिना बंधन के नीलिमा शर्मा
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु