एक मुठी ख्वाहिशे
संकोची जिगर
और तुम्हारी देहरी
चली आई थी हाथ तुम्हारा थामे
एक सोच के साथ
यह अजनबी हाथ
जो थामा हैं मैंने
उम्र भर को
उम्र भर जीने के लिय
क्या देगा साथ
और आज मुढ कर देखती हूँ तो
मीठी सी मुस्कान तैर जाती हैं
मेरे लबो पर
तुम अजनबी कहाँ थे
अजनबियों से बात करना
मेरी आज भी आदत नही
तुम तो मेरे अपने थे
तभी तो चली आई थी
बरसो पहले
तुम्हारा हाथ थामे
इस आँगन में
जहाँ मैंने
अपने सपने बोये थे
और तुमने उनको
सींचा अपने प्यार और विश्वास से
आज इसकी फसल तैयार हैं
सुनो ना .........
तुम आज भी वैसे ही हो जैसे २५ बरस पहले थे ......
मैं ही कुछ कुछ बदल गयी हूँ ......कह दो ना तुम तो
नीलिमा शर्मा निविया
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु
संकोची जिगर
और तुम्हारी देहरी
चली आई थी हाथ तुम्हारा थामे
एक सोच के साथ
यह अजनबी हाथ
जो थामा हैं मैंने
उम्र भर को
उम्र भर जीने के लिय
क्या देगा साथ
और आज मुढ कर देखती हूँ तो
मीठी सी मुस्कान तैर जाती हैं
मेरे लबो पर
तुम अजनबी कहाँ थे
अजनबियों से बात करना
मेरी आज भी आदत नही
तुम तो मेरे अपने थे
तभी तो चली आई थी
बरसो पहले
तुम्हारा हाथ थामे
इस आँगन में
जहाँ मैंने
अपने सपने बोये थे
और तुमने उनको
सींचा अपने प्यार और विश्वास से
आज इसकी फसल तैयार हैं
सुनो ना .........
तुम आज भी वैसे ही हो जैसे २५ बरस पहले थे ......
मैं ही कुछ कुछ बदल गयी हूँ ......कह दो ना तुम तो
नीलिमा शर्मा निविया
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु