सोमवार, 20 जनवरी 2014

तुम्हारा हाथ थामे

एक मुठी ख्वाहिशे 
संकोची जिगर 
और तुम्हारी देहरी 
चली आई थी हाथ तुम्हारा थामे 
एक सोच के साथ 
यह अजनबी हाथ 
जो थामा हैं मैंने
उम्र भर को
उम्र भर जीने के लिय
क्या देगा साथ

और आज मुढ कर देखती हूँ तो
मीठी सी मुस्कान तैर जाती हैं
मेरे लबो पर
तुम अजनबी कहाँ थे
अजनबियों से बात करना
मेरी आज भी आदत नही
तुम तो मेरे अपने थे
तभी तो चली आई थी
बरसो पहले
तुम्हारा हाथ थामे
इस आँगन में
जहाँ मैंने
अपने सपने बोये थे
और तुमने उनको
सींचा अपने प्यार और विश्वास से
आज इसकी फसल तैयार हैं

सुनो ना .........
तुम आज भी वैसे ही हो जैसे २५ बरस पहले थे ......
मैं ही कुछ कुछ बदल गयी हूँ ......कह दो ना तुम तो

नीलिमा शर्मा निविया




आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

रविवार, 5 जनवरी 2014

पुराने ख़त



आज सुबह से व्यस्त हूँ 
पुरानी अलमारी में 
रखे खतो को संजोने में 
कितनी खुशबुए मेरे इर्द गिर्द 
सम्मोहित कर रही हैं मुझे 
वोह प्यार का पहला ख़त 
मुझे मिलने के बाद 


पहली ही रात को लिखा
और उस दिन बजता
आल इंडिया रेडियो पर गाना
" कभी आर कभी पार लगा तीरे नजर"
मेरे जन्मदिन पर लिखे अनेको ख़त
जिसमे से सिर्फ एक पोस्ट किया था मुझे
और अंत में फिर से आल इंडिया रेडियो
फिर से साथ था तुम्हारे लफ्जों में
"तुम जो मिल गये हो तो यह लगता हैं "
वोह विवाह पूर्व का करवाचौथ
और तुम्हारा ख़त
अगले साल हम दोनों साथ होंगे इस दिन
और तुम मेरे लिय सजोगी उस दिन
और इस बार भी अंतिम लाइन
आल इंडिया रेडियो के सौजन्य से
" मांग के साथ तुम्हारा मैंने मांग लिया संसार "

ख़त दर ख़त मैं सुनती थी गाने तुम्हारे साथ
ख़त चाहे ४ दिन बाद मिलता
लेकिन गाना उस वक़्त बजता मेरे जहन में
आखिरी ख़त जो मुझे मिला था
विवाह से ३ दिन पहले
लबरेज़ था तुम्हारे प्यार से
अंतहीन प्रतीक्षा से गुजरे विरह को बतलाता हुआ
और तब आप का आल इंडिया रेडियो गा रहा था
' वादा करले साजना , तेरे बिना मैं न रहू मेरे बिना तू न रहे "

आज भी खतो को पढ़ते हुए
वही स्वर सुन रही हूँ
वही धुन बज रही हैं
वैसे ही थिरक रही हैं मेरी धड़कन

सुनो ना
२५ साल पुराने ख़त आज भी इतने ताजा से क्यों हैं























आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

" चाबियाँ"


" चाबियाँ"
 चाबियाँ 
तब तक कीमती होती हैं 
जब तक रहती हैं ताले के इर्द - गिर्द 
और तब तक बना रहता हैं 
उनका वजूद और कीमत 
जिस दिन ताला जंक से भर जाता हैं 
और फिट नही रहती 
उसकी अपनी ही चाभी 
उसके वजूद में 
लाख तेल डालने और कोशिशो के बावजूद !!!
तब हाँ तब!!!!
  बनवाई जाती हैं उसके लिय 
एक नयी चाभी 
जो खोल सके उसके बंद कोषो को 

और नयी चाबी के वजूद में आते ही 
फेंक दी जाती हैं 
पुरानी चाबी एक अनुपयोगी वस्तु की तरह 
किसी भी दराज में या कूढ़ेदान में 

क्युकि 
चाबी एक स्त्रीलिंग वस्तु  हैं 
उसका हश्र यही होता आया हैं 
सदियों से ...................
 नीलिमा शर्मा  निविया 



























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बेटिया



मायके में मतभेद /दीवारे खड़ी हो तो भी
 चुप सी रह जाती हैं बेटियाँ 
लोग समझते हैं खुश हैंअपने घर में , 
नही तोड़ी जाती हैं उनसे पर रोटिया 

भूख खाने की उनको लगती नही , 
आंसू पीती हैं भीतर दिल के बेटियाँ 
राजनीती करते रिश्ते देख कर भी मौन 
नही खेली जाती उनसे गोटियाँ 

नीलिमा शर्मा





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