मंगलवार, 23 जुलाई 2013

मेरे लफ्ज़ तल्ख़ हैं अज़ाब से

ऐसे क्यों होता हैं अक्सर
मैं कहना कुछ चाहती हूँ और
कह कुछ जाती हूँ
तुम बोलना कुछ चाहते हो और
चुप रह जाते हो अक्सर
ना जाने क्यों
मेरे लफ्ज़ तल्ख़ हैं
अज़ाब से
और लहजे तुम्हारे
पुरसुकून से
यह खामोशिया
यह बिना वज़ह का
अबोलापन
जो हमारे दरम्यान
फासले बढ़ा रहे हैं
जो हमारे दिलो में
घर बना रहे हैं
और हाशिये पर
खड़े हमारे वजूद
एक दुसरे से उलझते
आत्मसात करते हुए
एक दुसरे के होने को
न होते हुए भी करीब
सन्नाटे को चीरते हुए
कोशिश एक उजाले की
की करते हुए
मैं कितना भी जतन कर लू
कितनी भी वुज्जू / सजदे
होना तो वही हैं
जो तुमने सोचा हैं
मेरे उन लफ्जों से
आहत होकर Neelima Sharrma

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

न करो ज़ख्म की नुमाइश तुम हर नज़र में यहाँ पे धोका है ग़ज़ल

1.
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साथ अब तो मेरा वहाँ तक है
प्यार का सिलसिला जहाँ तक है

खामशी पूछती है अब तुम से
क्या मोहब्बत फ़क़त बयाँ तक है

खून जो बह रहा है आँखों से
वो वफाओं के हर निशाँ तक है

सुनते थे किस्सा जो रिसालों में
आज वो मेरी दास्ताँ तक है

मुश्किलें रोज़ बढती जाती हैं
ज़िन्दगी सिर्फ इम्तिहाँ तक है

दिल तो बाज़ार में नहीं बिकते
क्यों नज़र उनकी हर दुकाँ तक है

"नीलिमा" ये ग़ज़ल का कहना भी
हाल-ए-दिल है जो बस बयाँ तक है
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@2
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अक्स ऐसा नज़र में सिमटा है
बन्द आँखों से उसको देखा है
बज उठी साँसें उसकी पायल सी
मन ही मन जब उसको सोचा है
उसकी आँखों में इक शरारत है
कितनी मुश्किल से खुद को रोका है
तुम करो न इलाज अब इसका
ज़ख्म दिल का बहुत ही गहरा है
हर्फ़ दर हर्फ़ है मोहब्बत में
फिर लगता है कुछ अधूरा है
न करो ज़ख्म की नुमाइश तुम
हर नज़र में यहाँ पे धोका है
शायरी में मोहब्बतें लिक्खो
"नीलिमा" ये ग़ज़ल का हिस्सा है

रविवार, 7 जुलाई 2013

अभी अभी
















 ख्यालों में आ गया हैअभी

दिल में तूफ़ान सा उठा है अभी

हम सितारा समझ रहे थे उसे 
चाँद था वो, पता चला है अभी

तिश्नगी बढ़ गई है दुनिया की 
पर्दा पलकों का क्यों उठा है अभी

क्या पता उसको बे-बसी मेरी 
चांदनी में जो हंस रहा है अभी

गमज़दा हूँ मैं तेरी यादों से 
फिर भी यादों का आसरा है अभी

इक नज़र देख लेते जी भर कर 
वक़्त-ए-रुखसत ये इल्तिजा है अभी

और कुछ भी न पूछए साहब
नीलिमा सिर्फ नाम है अभी