ऐसे क्यों होता हैं अक्सर
मैं कहना कुछ चाहती हूँ और
कह कुछ जाती हूँ
तुम बोलना कुछ चाहते हो और
चुप रह जाते हो अक्सर
ना जाने क्यों
मेरे लफ्ज़ तल्ख़ हैं
अज़ाब से
और लहजे तुम्हारे
पुरसुकून से
यह खामोशिया
यह बिना वज़ह का
अबोलापन
जो हमारे दरम्यान
फासले बढ़ा रहे हैं
जो हमारे दिलो में
घर बना रहे हैं
और हाशिये पर
खड़े हमारे वजूद
एक दुसरे से उलझते
आत्मसात करते हुए
एक दुसरे के होने को
न होते हुए भी करीब
सन्नाटे को चीरते हुए
कोशिश एक उजाले की
की करते हुए
मैं कितना भी जतन कर लू
कितनी भी वुज्जू / सजदे
होना तो वही हैं
जो तुमने सोचा हैं
मेरे उन लफ्जों से
आहत होकर Neelima Sharrma
मैं कहना कुछ चाहती हूँ और
कह कुछ जाती हूँ
तुम बोलना कुछ चाहते हो और
चुप रह जाते हो अक्सर
ना जाने क्यों
मेरे लफ्ज़ तल्ख़ हैं
अज़ाब से
और लहजे तुम्हारे
पुरसुकून से
यह खामोशिया
यह बिना वज़ह का
अबोलापन
जो हमारे दरम्यान
फासले बढ़ा रहे हैं
जो हमारे दिलो में
घर बना रहे हैं
और हाशिये पर
खड़े हमारे वजूद
एक दुसरे से उलझते
आत्मसात करते हुए
एक दुसरे के होने को
न होते हुए भी करीब
सन्नाटे को चीरते हुए
कोशिश एक उजाले की
की करते हुए
मैं कितना भी जतन कर लू
कितनी भी वुज्जू / सजदे
होना तो वही हैं
जो तुमने सोचा हैं
मेरे उन लफ्जों से
आहत होकर Neelima Sharrma