गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

जिन्दगी

जिन्दादिली से
जीना हैं
जिन्दगी को
जो मिलती हैं
ख्वाब सी 
खुशबू
अभी तलक
उस् में
अहसास की
उम्र हैं कि
महक रही हैं
नफासत से
जिसे भूल गयी
जिन्दगी की किताब में
रखकर
महसूस हो रही हैं
गुलाब के इत्र सी
फिजाओं में
मौसम में आते बदलाव सी
नीलिमा शर्मा निविया



आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

शहर

 हर
 शहर  की अप नी खुशबू   होती हैं
 कोई शहर मन को उदास कर देता  हैं 
 कोई उदास  मन को  सुक़ून  देता   हैँ 
 
 हर शहर की  अपनी मिटटी  होतीं  हैँ 
 कोई मिटटी  बंजर जमीन सी सिसकती हैं 
 कोई मिटटी  लहलहाती  हैं  फूलोँ की  खुश्बु  से 

 हर शहर का  अपना  सँगीत होता  हैं 
 कोई सरगम  सा बजता हैं  कानो में 
 कोई गाडियों के हॉर्न सा चीखता हैं 


  हर शहर  का अपनी जिन्दगी होती हैं 
 कही  जिया जाता हैं हर लम्हा 
 कही दौड़ लगायी जाती लम्हे के लिय 


 हर शहर हसीन होता हैं एक कशिश लिय 
 कोई अपना शहर होता   हैं हसीन  सा 
 कोई अपनों का  शहर होता हैं कशिश लिय हुए 


 नीलिमा शर्मा  निविया 
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

शादीशुदा प्रेम


तुम शादीशुदा मर्द भी कितने अजीब होते हो 
प्रेम अगर  हो जाए पत्नी से  तो
जमीन आसमान इक करते हो 
एकाधिकार तुम्हारा हैं इस दिल पर 
जानते हुए भी 
बार बार झांकते हो 
हर दरीचे की 
हलकी सी भी दरारों से
और नही छोड़ते
जरा भी गुंजाईश
ताका झांकी की
किसी और की
खाना कितना भी अच्छा हो
लफ्ज़ जुबान से नही
कभी आँखों की चमक से
तो कभी स्नेहिल स्पर्श से बयां करते हो
तुम शादीशुदा मर्द भी कितने अजीब होते हो
सज संवर कर जाए कही पत्नी
नीचे से ऊपर तक निगेहबानी करते हो
खुद किसी से भी बतियाते रहो
बीबी को अपनी आँखों के घेरे में रखते हो
सबकी नजरे पढने की कोशिश में
अपने सरमाये में उसे महफूज़ रखते हो
कमर या कंधे पर रखा तुम्हारा हाथ
कितना मजबूत करता हैं मनो बल
जानते हुए भी
सरे आम दो कदम दूर से बात करते हो
तुम शादी शुदा मर्द भी कितना अजीब होते हो
उम्र के हर मुकाम पर
बदल जाते हैं तुम्हारे तौर तरीके
प्यार जताने के लहजे
आँखों के नीचे के काले घेरे
उड़ते सफ़ेद होते बाल
घुटने के दर्द से बदलती चाल
मोटी ड्राई होती शरीर

की खाल
फिर भी बीबी को गुलाब लगते हो
तुम शादीशुदा मर्द भी कितना अजीब होते हो
प्यार के इज़हार में मुफलिस से
लाखो की भीड़ में अपने अपने
बच्चो के भविष्य के जदोजहद करते
बीबी की नज़रे बचाकर माँ की मुट्ठी भरते
बहन की हर आह पर सिसकते
निशब्द जिन्दगी जीते हुए
अपने लिय न सोच कर
बीबी के झुमके लिय के साल भर
ऑफिस में फाके करते हो
तुम शादी शुदा मर्द भी कितना अजीब होते हो
प्यार मोहताज नही होता  तारीखों का 
 अक्सर भूल जाया करते हो 
 कभी गुस्ताखी  हो भी जाए  
तुम्हारी प्यारी जिन्दगी से 
मुआफ दिल से करते हो 
फाकाकशी के दिन हो  या  व्यस्त  तारीखे हो 
 प्रेम की स्वप्निल दुनिया की सैर करते हो 
 इक बार का समर्पण  
उम्र भर की जरुरत 
 अग्नि को साक्षी मान वादा करते हो 
तुम शादी शुदा मर्द भी कितना अजीब होते हो
प्यार का इज़हार लफ्जों से नही
अपने स्नेहिल स्पर्श और आँखों की चमक से करते हो ..................... नीलिमा शर्मा

























आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु