मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

नववर्ष की पूर्व संध्या

दिसंबर तेरा जाना 
 जनवरी तेरा आना 
 कुछ नया नही  तो 
 फिर भी 
 हम इस तरह 
इसे मनाते हैं 
 जैसे दुखो  के
 लम्बे प्रवास  बाद 
 सुख लौट के आते हैं 
 भूल जाते हैं 
 इस उन्माद में 
 दुःख  सुख तो 
 हमारे ही कर्मो
 के उधार खाते हैं 

 हे इश्वर नववर्ष की पूर्व संध्या पर  आपसे यही कामना हैं कि  मानवता  संवेदनशीलता का ह्रास न हो  और कम से कम  हम इंसान अपने किसी अपने  की आँखों में आंसू  लाने  का कारण न बने ...बाकि सब कर्मो का लेखा जोखा .................. २०१४ का वर्ष आप सभी के लिय शुभ हो  




आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

सोमवार, 30 दिसंबर 2013

दिसम्बर की आखिरी पूरी रात


दिसम्बर की आखिरी पूरी रात 
और पौष का महिना 
ठण्ड हैं कि थमती नही हैं 
कोहरे के आँचल में दुबकी 
मेरी यादे ठिठुर रही हैं 

जिन्दगी की पग्दंदियाँ
कब चौड़ी सडको पर खुली
और कब फिर से सकरी हुयी
यंत्रवत सी अनजाने में अनचाहे ही

कितनी बार रुदन फूटे
जब जब अपने छूटे
रुदाली सी अंखियाँ बरसी
तस्वीरो से मिलकर उनकी कई बार


कितनी मुस्कान बिखरी लबो पर
कितनी बार खिलखिलाए खुलकर
अपने बरसो बाद मिले तो
छल छल नीर बहा अँखियाँ से


तेरा (१३)साल बीत चला हैं
सब कुछ अर्पण करके तुझको
अब सबकुछ मेरा होगा
खुद को जगा के भीतर मुझको

नए सपनो की जोत जली हैं
मन की मुरझाई कली खिली हैं
नववर्ष की प्रतीक्षित नूतन बेला में
जाते दिसंबर को आखिरी सलाम मेरा



.......नीलिमा शर्मा निविया ....






















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

व्यर्थ गया उसका बलिदान








व्यर्थ गया उसका बलिदान
आज भी लुट रही अस्मते 
आज भी हो रहे सामूहिक बलात्कार 
स्त्री कभी निर्जीव वस्तु थी 
जिसकी भावनाए शून्य थी 
आज स्त्री भोग हैं 
सामूहिक भोग

मोमबत्ती अब श्रधान्जली
का सामान नही
स्त्री /बच्चियों के देह
में प्रवेश करायी जाती हैं
एक पुरुष जो सचेत होता हैं
अपनी जवान बेटी को देख कर
दुसरे की बेटी पर लार टपकाता हैं


चाहे जितना शोर मचा लो
चाहे जितना आन्दोलन करलो
जब दिल से आवाज नही आएगी
पुरुष की पुरुषता हैवानियत ही ढायेगी

निर्भय तूने बलात्कार तो नही रोके
अपने बलिदान से
पर सचेत कर दिया हर स्त्री को
लड़ने को अपमान से

तुम जिस भी लोक में हो
वहां उस बलात्कारी पुरुष से कहना
तू फिर से जन्म ले इस धरती पर
और उसके यहाँ न हो बेटी या बहना


उसकी कलाई राखी को तरसे
उसकी गोद प्यार को
उसकी राते सूनी हो
उसकी सेज ओउरत को

ओउरत के नाम पर उसे
सिर्फ माँ नसीब हो
और रिश्ते से दुनिया में
वोह सबसे गरीब हो ................नीलिमा शर्मा निविया






















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

रविवार, 15 दिसंबर 2013

अपनी अपनी जिन्दगी


क्यों !!
आखिर क्यों पूछ लिया 
एक स्त्री का एकांत 
जिसका कभी अंत नही 
बचपन से बुढापे तक 

सिसकता बचपन
हुलसाती जवानी
कराहती साँझ
सिसकती उम्र की निशानी

हर पल स्व को मार
पर में खुश होती
पुरुष के अहम् को
अपने अस्तित्व पर ढोती


झूठे नकाब के पीछे
मुखोटे पहचानती
नियति के जहर को भी
अमृत मानती


अपने अपनों के
बीच परायी सी
साधनों की भरमार
तन मन की सताई सी


कितना सूना होता हैं
इनके मन का कोना
रिश्तो की भीड़
पर अपना कोई भी ना


यह जिन्दगी भी क्या हैं
एक नारी की
महज एक मृगतृष्णा

जहा हम कदम साए भी
अपनी माँ के जाए भी
जिए चले जाते हैं
अपनी अपनी जिन्दगी
अपनी .......
अपनी ............
जिन्दगी ................ नीलिमा शर्मा





आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु