सोमवार, 26 नवंबर 2012

Maa

मूक अवाक् निशब्द  माँ 
 और उसके सामने
 उसकी अपनी जायी  संतान 
  

 बूढ़े कापते हाथो से आज 
 कीमती कांच की बरनी छूट गयी 
 चुपके से लड्डू निकलते हुए 
 अपने और अपने पोते के लिए 



 बहु की जुबां और बेटे के हाथ 
दोनों का वार चुभ गया 
 आग लग गयी सीने में 
 पानी आगया आँखों में 


आंसू  का सबब 
बेटे के हाथ उठने की  
शर्म से था या 
 बरनी के टूटने के 
अफ़सोस से 
 या लड्डू न मिलने से 

 पोता अभी तक सोच 
रहा हैं .दादी के उंगुली थामे 
 चुपके से बालकोनी में ..........................Neelima sharma

रविवार, 11 नवंबर 2012

Deewali ka shagun

होंठो से रिसता  खून
 सूनी  आँखे 
 लहराती सी चाल 
 बिखरे से बंधे बाल 

बनीता 
आँगन लीप रही हैं 

 
 आज धनतेरस हैं 
 किसनू  लोहे की 
 करछी खरीद लाया हैं 
 शगुन के लिए 


 आते ही उसे
घर की लक्ष्मी पर
 अजमाया हैं 

 बनिता की माँ  ने 
 पहली दीवाली का 
 शगुन 
 नही भिजवाया हैं 

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

 तुमने कहा था
 मेरे कदमो के निशान
 तुम्हारा रास्ता होंगे 
 मुझे देखो 
 मैं उड़  रही हूँ  
तुम्हारे प्यार में 
 ओर 
 तुम जानते हो न 
 सजना 
 उड़ते 
 पक्षियों के 
 पैर /पर 
 निशान  नही छोड़ते 
 जमीन पर 

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

हँसी के रूप

रमती  परेशान थी 
 इकलोती पाचवी पास 
औरत  थी मोहल्ले की 
 और पति उज्जड गवार 
 रात शराब के नशे मैं 
 उसने बक्की  थी उसको
माँ- बहन की गालियाँ
    . मर क्यों न गयी रमती
 शरम से 
.
.
 रमती आज मुस्करा रही हैं 
 सामने पीली कोठी वाली  
बाल कटी   मेमसाहेब
 कल रात सड़क पर 
 पति के हाथो पीटी हैं 
 माँ- बहन की गालियों  के साथ  
.
  संस्कार किताबो के मोहताज नही होते 
 रमती हँस  रही हैं किताबो पर 
 अपने पर   
 पीली कोठी  की अभिजत्यता पर 

 खुद पर हँस ना बनता हैं उसका ...............  नीलिमा