गुरुवार, 20 मार्च 2014

चुप्पिया





चुप्पिया
जब गूँज बनकर
दिमाग में धमकने लगे
और
खामोशिया भी
खुद से गुफ्तगू करने लगे
तब
मेरे लफ्ज़ 

मुझे राहत देते हैं
अनजाने में
अनचाहे शब्द भी
जब
कलम से निकलते हैं
कुछ
बहने लगता हैं भीतर
शायद
चुप्पी से जन्मा गर्दा
ख़ामोशी से पनपा लावा
अपनों पर बरसे
इसके पहले
उतार लेती हूँ
इन्हें
कागज के मासूम टुकडो पर
यह कागज के टुकड़े
जो बलि चढ़ जाते हैं
मेरे मौन की
और
बना जाते हैं मुझे
मजबूत
फिर से
लड़ने को अपने
एकांत से
मौन रहना
मेरी आदत नही हैं
नियति बन रही हैं
सुनो ना !
कुछ पल मेरे साथ रहो
कुछ मुझे पढो
कुछ पढ्वाओ
मुझे भी जीना हैं
तुम्हारे
प्रेमसिक्त शब्दों के शोर में .............नीलिमा शर्मा Nivia
 —

















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

शनिवार, 15 मार्च 2014

होली के रंग



एक चुटकी गुलाल 
रंग होता लाल 
आँखों में आँखे 
रंग दिए गाल 

पानी भरे गुब्बारे
रात में भरकर सारे
छुप कर लगा निशाना
भीगे उनके कपडे सारे

गुझिया नमकीन मिठाई
सलहज साली भोजाई
रंग ही तो आज सबको
क्या इसकी उसकी लुगाई

फाग गीत और ढोल
भूल गये हम वो होली
इतिश्री अब होती बस
हैप्पी होली जैसे बोल

नीलिमा शर्मा Nivia





भाटिया जी खुश हैं 
आज उन्होंने जमकर खेली हैं 
साथ वाली अहलावत भाभी से होली 
हर बरस बीबी के संग होली मानते थे 
एक चुटकी रंग गाल पर लगाकर 
बस खुश हो जाते थे 
इस बार होली मिलन मैं जाऊँगा
जम कर होली मना ऊँगा
सोच कर मन ही मन हर्षाये
बीबी घर पर खेले होली
कॉलोनी के सारे युवा ,
उम्र के हो या मन से
होली मिलन में खेले होली
आज तो भैया जम के

घर आकर जो देखा हाल
मन ही मन घबराए
उन्होंने ने तो सिर्फ एक
की जोरू संग खेली होली
यहाँ अहलावत कृष्ण कन्हैया बन
सारी कॉलोनी में छाये
क्या बूढ़ी क्या कमसिन बाला
खुद उनकी अपनी बीबी
रंग रही थी उनके दुश्मन को
घर के बाहर लगा के ताला

हाथ पकड़ कर बाँह मरोड़ कर
बीबी को घर लाये
पलट के बोली
बुरा न मानो यह तो थी होली
देवर के संग बन के हम जोली
आज तो जैम के खेली होली

तुम घर रहते तो
तुम संग होली होती
न तुम मस्त होते न
मैं मदमस्त होती

अबसुन लो तुम मेरी बोली
बुरा न मानो सजन यह हैं होली....नीलिमा शर्मा Nivia



बुरा न मानों होली है!!!!!! इस बार सजन ने हमसे शर्त लगायी हैं खेलेंगे जमकर होली उनसे एक फिरंगन मेरी सहेली मेरे घर पर आई है देख जिसे इनकी भी बांछे खिल आई है नीला / पीला /लाल/गुलाबी रंगों की थाली सजाई हैं सरसों के तेल मालिश के संग इतर की महक भी उनसे आई हैं पर भूल गये वोह प्यारे साजन हम भी उन्ही की लुगाई हैं अपना पुराना सूट पहना के सहेली को हमने उनकी कफ्तान चुराई हैं बच्चो के संग भेज चौबारे फिरंगन को दो घूँट भांगहोंठो से लगायी हैं रंग के अपना पूरा चेहरा / बॉडी लिपट कर उनसे होली मनाई हैं नशे का असर सर पर नाचा धूम मोहल्ले मैं दोनों ने मचाई हैं फिरंगन ने देख के ऐसी होली खूब लम्बी विडिओ बनायीं हैं भांग के नशे में हमने भी जेज म्यूजिक पर दादरा ठुमरी सुनाई हैं साँझ तलक खेली हमने होली साजन हमको समझे फिरंगन सहेली नशा उतरने के बाद देख हमारी सूरत उनकी उढ़ी चेहरे से हवाई हैं जिन्दगी भर हारी उनसे
आज उनकी मैंने यह गत बनायीं हैं सर पर हाथ धर कर सोचे मेरे प्रभू एक बात यही समझ में आई हैं बीबी से भगवान् न जीते कभी मैंने तो बेकार मैं शर्त लगायी हैं अब न खेलू मैं किसी के भी संग होली कसम मेरे सर की उन्होंने खाई हैं .....नीलिमा








आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

शनिवार, 8 मार्च 2014

खुद पर अपने रखो विश्वास

आज फिर समूह में हंस रही हैं स्त्र्रियाँ
रंगबिरंगेपरिधानों में सजी
उम्मीदे के दामन थामे
एक दुसरे के गले लग रही है स्त्रिया

दूर गांव में उनकी सहोदारियाँ 
गांव की चोपाल से घर की दहलीज़ तक
अन्दर तक क्षत विक्षत हो रही हैं
अपने और अपनों के लिय

घर के भीतर पति से पिट कर आई
उनकी गृह सहायिका , लाल आँखों से
अपनी नीली देह को आँचल में छिपाती
खुश हैं अपने सुहाग चिन्हों के होने से

और गर्भ में पलती उनकी अजमी बेटी
गिन रही दिन अपनी मौत के
और स्त्रीया हंस रही हैं समूह में
महिला दिवस विश करके

दिन सिर्फ विश करने तक हैं
बड़े बड़े व्याख्यान तक बस
कमजोर खुद हैं स्त्री शक्ति
एक देह में मेहमान हैं बस

खुद पर अपने रखो विश्वास
अपने अन्दर भरो साहस
लड़ना अपने अपनों से नही
मिटाओ कमी जो हैंतुम में ख़ास

.....................नीलिमा शर्मा निविया





आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

सोमवार, 3 मार्च 2014

बस सात फेरे और तुम मेरे



बस सात फेरे 
और तुम मेरे 
कितना आसान हैं ना 
यूँ किसी का हो जाना 
पर एक उम्र भी कम होती हैं 
किसी का पूरी तरह हो जाने में 
बरसो तक का साथ 
फिर भी अजनबियत सी रहती 
और कभी एक पल 
उम्र भर को जोड़ देता हैं 
बिना सात फेरे लिय भी

एक स्त्री उम्र भर देती हैं पुरुष को संबल
फिर भी निकाह टूटे हैं आखिर क्यों ?
एक पुरुष खुद को भूलकर
बना लेता अजनबी का अपना सर्वस्व
फिर भी घरो में कटुता क्यों

विवाह ,परिणय निकाह
सब समाज के बनाये घेरे हैं
संबंधो के एक परिधि में रखने के
न स्त्री इस रेखा को पार करे
न पुरुष इस रेखा के भीतर
किसी अन्य के साथ प्रवेश करे
तभी सार्थक हैं
निकाह का कुबूल होना
अग्नि का साक्षी होना

आज विवाह बदल रहे हैं
कल तेरे आज मेरे होने में
आज निकाह तीन लफ्जों से
बदल रहे हैं उमरभर रोने में

आज स्त्रिया पछाड़े मार कर नही रोती
आज पुरुष रोनी सूरत बनाकर कतल नही करते किसी का
आज जश्न मनाया जाता हैं चाहे के अनचाहे हो जाने पर
फिर भी
विवाह ,परिणय ,निकाह
समाज की धुरी हैं और होते रहेंगे
और हम यु ही कभी ख़ुशी से
कभी उदासी से
इन रिश्तो को ढोते रहेंगे
ढोते रहेंगे ............
नीलिमा शर्मा निविया









आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु