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क्या तुम भी
शाम की दहलीज़ पर
आस का दिया जलाते हो?
ओर किसी आवारा पत्ते की आवाज़ पर
दरवाज़े की तरफ़ भागे जाते हो ?
क्या तुम भी दर्द छिपाने की कोशिश
करते करते .........
अक्सर थक से जाते हो ?
ओर बिना वज़ह से मुस्कराते हो /?
क्या तुम भी नींद से पहले पलकों पर
ढेरो ख्वाब सजाते हो ?
या फ़िर बिस्टर पर लेट कर
रोते रोते सो जाते हो ........................................................................ नीलिमा निविया