तुम्हारी इन दो आँखों मैं
देखने की हिम्मत कभी नही हुयी थी
और आज देख रहा हूँ इनमें
अपने दो अस्तित्व
यथार्थ और पलायन के मध्य
बिखरते अस्तित्व
एक जो भाग रहा हैं जीवन के सत्यो से
दूसरा जो द्दकेल रहा हैं
जीवन की जिजीविषा से झूझने को
मैं कमजोर .कायर नही
फिर भी ढूढ़ रहा हूँ
अपने होने न होने के सवाल
के हर मुमकिन जवाब को
तुम मेरी हो शोना
अरमानो का काजल लगाकर
नैनो मों सपने भर
उतर आई थी आँगन मेरे
विस्मित सी
अचंभित सी
अज्ञात में ज्ञात तलाशती
परायो में अपने
रुनझुन पायल
छनकती चूडिया
लहकती चाल
बहकती ताल
सोने के दिन थे चादी की राते
करती थी तुम कितना
खिल खिलते हुए अनगिनत
ख़तम न हो सकने वाली बाते
आज चुप हैं वोह नशीली रुनझुन
मैं बोलता हूँ तुम सुन लेने का अभिनय करती सी
आँखों मैं एक सवाल लिय देखती हो मुझे
हुक सी उठ जाती हैं मेरे हृदय में
क्या मैं कायर हूँ
जो तुम्हारी निगाहों के खामोश सवालों का जवाब नही
मेरे पास तुझे देने को अब ख्वाब नही
अक्सर गम रहता हूँ तेरी आँखों की रौशनी मैं
नही समझ पता तेरा एक भी प्रश्न
यह आँखे सामने होती हैं सौ सौ सवाल करती
और जब मैं तलाशने लगता हूँउन में
अपने होने न होने का वजूद
तुम अपनी आँखे बंद कर लेती हो
और ढलका देती हूँ चुपके से
सबसे छिपाकर मोती
और गम हो जाता मेरा सम्पूरण अस्तित्व अँधेरे में
मेरी शोना ...
सुनो न ..
एक बार तो मुझे आँखे भर देखने दो
इन झील सी आँखों मैं
मुझे डूब कर इन में
पार उतरना हैं .................नीलिमा शर्मा
देखने की हिम्मत कभी नही हुयी थी
और आज देख रहा हूँ इनमें
अपने दो अस्तित्व
यथार्थ और पलायन के मध्य
बिखरते अस्तित्व
एक जो भाग रहा हैं जीवन के सत्यो से
दूसरा जो द्दकेल रहा हैं
जीवन की जिजीविषा से झूझने को
मैं कमजोर .कायर नही
फिर भी ढूढ़ रहा हूँ
अपने होने न होने के सवाल
के हर मुमकिन जवाब को
तुम मेरी हो शोना
अरमानो का काजल लगाकर
नैनो मों सपने भर
उतर आई थी आँगन मेरे
विस्मित सी
अचंभित सी
अज्ञात में ज्ञात तलाशती
परायो में अपने
रुनझुन पायल
छनकती चूडिया
लहकती चाल
बहकती ताल
सोने के दिन थे चादी की राते
करती थी तुम कितना
खिल खिलते हुए अनगिनत
ख़तम न हो सकने वाली बाते
आज चुप हैं वोह नशीली रुनझुन
मैं बोलता हूँ तुम सुन लेने का अभिनय करती सी
आँखों मैं एक सवाल लिय देखती हो मुझे
हुक सी उठ जाती हैं मेरे हृदय में
क्या मैं कायर हूँ
जो तुम्हारी निगाहों के खामोश सवालों का जवाब नही
मेरे पास तुझे देने को अब ख्वाब नही
अक्सर गम रहता हूँ तेरी आँखों की रौशनी मैं
नही समझ पता तेरा एक भी प्रश्न
यह आँखे सामने होती हैं सौ सौ सवाल करती
और जब मैं तलाशने लगता हूँउन में
अपने होने न होने का वजूद
तुम अपनी आँखे बंद कर लेती हो
और ढलका देती हूँ चुपके से
सबसे छिपाकर मोती
और गम हो जाता मेरा सम्पूरण अस्तित्व अँधेरे में
मेरी शोना ...
सुनो न ..
एक बार तो मुझे आँखे भर देखने दो
इन झील सी आँखों मैं
मुझे डूब कर इन में
पार उतरना हैं .................नीलिमा शर्मा