शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

Akhir kyu?

माँ क्यों कहती थी तुम?
बाहर जाओ तो 
एक पुरुष के साथ जाओ 
पिता , पति, पुत्र या भाई 
मैं एक पुरुष के साथ ही तो बाहर थी 
जो न पिता था
ना ही भाई
पर उसने साथ निभाने की
कसम थी खाई

लड़ गया न वोह
उन दरिंदो से
जो पुरुष ही थे
काश तुम मुझे बता पाती
कि उन पुरुषो की पहचान
जो किसी माँ केसच्चे बेटे न थे
जिनकी कोई बहन न थी
जिनकी कभी बीबी न होगी
जो कभी कन्या संतान नही जनेगे

माँ क्यों बैठती मैं
फिर उस
पीले पर्दों वाली
सफ़ेद बस में ..........


माँ मुझे जीना हैं ....

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

Nadi


कभी देखा हैं
तुमने नदी को
अनवरत बहती हैं
कभी रूकती नही
जीवन देती सी
अबाध चलती हैं


और तुम बादल से
कभी इतना बरस
जाते हो उस पर
कि वोह मजबूर हो जाती हैं
तबाही को .


मैं नदी नही हूँ
बस इतना याद रहे ........

Ek stree -do man


एक स्त्री -दो मन

कल जाना हैं तुमने
प्रिय !!
और मैं तुम्हारे साथ जाऊंगी
तुम्हारे प्राण बनकर
सिर्फ मेरी देह यहाँ होगी
अपने कर्तव्य -पालन करती सी

~~~~~~~~
मैं हूँ ना
मैं माँ- भी
मैं पिता भी
उनकी अनुपस्तिथि मैं
बेटा !!!
एक दुसरे का संबल बन
जी ले लेंगे उनके बिना
सोमवार से शनिवार की दूरी

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

शीलू बंद हैं कमरे मैं 
पागल करार दी गयी
कल रात 

आते ही होगे 
मानसिक चिकित्सालय 
वाले
उसको
ले जाने के लिए

उसकी इस
विक्षिप्त हालत का
ज़िम्मेदार कोन ?

उसने तो बस
20 सालो से
घरेलू हिंसा
की क्रिया की
प्रतिक्रिया में
हाथ अपना
उठाया था
पहली बार ................................Neelima Sharma

सोमवार, 26 नवंबर 2012

Maa

मूक अवाक् निशब्द  माँ 
 और उसके सामने
 उसकी अपनी जायी  संतान 
  

 बूढ़े कापते हाथो से आज 
 कीमती कांच की बरनी छूट गयी 
 चुपके से लड्डू निकलते हुए 
 अपने और अपने पोते के लिए 



 बहु की जुबां और बेटे के हाथ 
दोनों का वार चुभ गया 
 आग लग गयी सीने में 
 पानी आगया आँखों में 


आंसू  का सबब 
बेटे के हाथ उठने की  
शर्म से था या 
 बरनी के टूटने के 
अफ़सोस से 
 या लड्डू न मिलने से 

 पोता अभी तक सोच 
रहा हैं .दादी के उंगुली थामे 
 चुपके से बालकोनी में ..........................Neelima sharma

रविवार, 11 नवंबर 2012

Deewali ka shagun

होंठो से रिसता  खून
 सूनी  आँखे 
 लहराती सी चाल 
 बिखरे से बंधे बाल 

बनीता 
आँगन लीप रही हैं 

 
 आज धनतेरस हैं 
 किसनू  लोहे की 
 करछी खरीद लाया हैं 
 शगुन के लिए 


 आते ही उसे
घर की लक्ष्मी पर
 अजमाया हैं 

 बनिता की माँ  ने 
 पहली दीवाली का 
 शगुन 
 नही भिजवाया हैं 

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

 तुमने कहा था
 मेरे कदमो के निशान
 तुम्हारा रास्ता होंगे 
 मुझे देखो 
 मैं उड़  रही हूँ  
तुम्हारे प्यार में 
 ओर 
 तुम जानते हो न 
 सजना 
 उड़ते 
 पक्षियों के 
 पैर /पर 
 निशान  नही छोड़ते 
 जमीन पर 

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

हँसी के रूप

रमती  परेशान थी 
 इकलोती पाचवी पास 
औरत  थी मोहल्ले की 
 और पति उज्जड गवार 
 रात शराब के नशे मैं 
 उसने बक्की  थी उसको
माँ- बहन की गालियाँ
    . मर क्यों न गयी रमती
 शरम से 
.
.
 रमती आज मुस्करा रही हैं 
 सामने पीली कोठी वाली  
बाल कटी   मेमसाहेब
 कल रात सड़क पर 
 पति के हाथो पीटी हैं 
 माँ- बहन की गालियों  के साथ  
.
  संस्कार किताबो के मोहताज नही होते 
 रमती हँस  रही हैं किताबो पर 
 अपने पर   
 पीली कोठी  की अभिजत्यता पर 

 खुद पर हँस ना बनता हैं उसका ...............  नीलिमा 

सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

पतिव्रता



  चंचल चुप थी 
 एक अरसे से 

  पति के घर से 
निकाल दी गयी हैं  
 पिछले ही महीने 

न ही दहेज़ मिला था 
 न ही रूप सुंदरी थी 
 न कमाती थी पैसा 

   आज जिद पर अड़ी हैं 
 उसे भी खरीदनी हैं
 लाल चूड़ियाँ 
 परसों उसका पहला 
 करवा चौथ  जो हैं 

.................................नीलिमा शर्मा 

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

एक कोना


 मेरे कमरे का एक कोना 
 बस मेरा अपना हैं 
 निहायत अपना 
 मेरी यादे
 मेरे आंसू 
 मेरे सपने 
 मेरे अनजाने अपने 
 सब यहाँ रहते हैं मेरे साथ 
 जब कोई नही होता
 मेरे  साथ 
उस कोने से
मैं खुद को खुद में  ..
ढूढ़ लेती हूँ 
 बेशकीमती हैं यह कोना 
 अदाकारी नही होती ना  यहाँ 
 जबरन  मुस्कराने की 

सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

Shakti Ki Aaradhana

तुम शिवा भी हो 
तुम धात्री भी 
तुम क्षमा भी हो 
तुम कालरात्री भी 
हम नतमस्तक तुम्हे ध्यावे 


तुम रूप भी हो 
तुम जय भी 
तुम यश भी
तुम पराजय भी
हम नतमस्तक तुम्हे ध्यावे

तुम ज्ञान भी मेरा
स्वाभिमान भी मेरा
तुम अंज्ञान भी मेरा
तुम मोहजाल भी
हम नतमस्तक तुम्हे ध्यावे


तुम जीवन के हर सुर में
तुम जीवन की लय में
तुम सरस्वती भी हो
तुम शाकम्भरी भी
तुम जनम भी हो तो काल भी
हम नतमस्तक तुम्हे ध्यावे


हे वरदायनी , हे सिंह वाहिनी वर दो
जीवन सबका खुशियों से भर दो
सुबह -शाम जो जोत जलाये
अंतस सबका आलोकित कर दो
तन-मन चरित्र पवित्र हो
हम नतमस्तक तुम्हे ध्यावे



निष्काम करे जो सब साधना
पूरण हो सबकी कामना
सत्य बने सबका सारथि
सच्चे दिल से जो करे आरती
हम नतमस्तक तुम्हे ध्यावे
..............Written by नीलिमा .Happy Durga Navmi

शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

Suno na.......




 एक बूँद पानी की 
तपते सहरा में 
 ठंडी हवा का झोंका .
 घुटती गरम   दोपहर  मैं 
 उष्मा देता सूरज 
 सर्दी की सुबह का 
 क्या क्या उपमाये गढती  हूँ 
 तुम्हारे लिये 
 खामोश  नज़र तुम्हारी 
सब कुछ कह जाती हैं 
 मंद स्मित मुस्कान से 
 पर  अनबोले लफ्जों से .

क़ी ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
तुम्हारे स्वतंत्र आयाम की नीलिमा हूँ 
 मैं आकाश हु तुम्हारी उडान  का 
 मैं सोपान हु तुम्हारी पहचान का 
 मैं हूँ तो तुम हो तुम हो तो मैं हूँ 

 सुनो न ......................... आज कुछ लफ्जों मैं बयां करो मेरे लिए 

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

Meri kalam



सृष्टि का अंत हैं 
इश्वर तू अनंत हैं 
तम हैं अंतस में 
आलोक की तलाश में ........" आवाज़ दे कहाँ है 

हस्तिनापुर सा बना भारत
कोरवो की भीड़ हैं 
दुर्योधन अनेक रूप में 
पांड्वो की तलाश हैं ....................." आवाज़ दे कहाँ है 


शुभ- निशुम्भ भी
तो महिषसुर भी यहाँ
रक्तबीज अनेक हैं
बस शक्ति की तलाश हैं ...." आवाज़ दे कहाँ है



रावण हैं यहाँ तो मेघनाद भी
कुम्ब्करण की तरह सोता समाज हैं
सीता का हरण होता हर रात हैं
एक राम की तलाश हैं ..................." आवाज़ दे कहाँ है


ज्योतिमय पुंज बनो
तम को तुम हरो
आलोकित अंतस करो
मेरे प्यारे रब हमें उस
एक चमत्कार की तलाश हैं.............." आवाज़ दे कहाँ है

सोमवार, 8 अक्तूबर 2012

क्या संबोधन दू?

आप......
फिर एक बड़प्पन सा 
पसरा रहेगा उम्र भर हमारे मध्य 
हिचक सी रहेगी कुछ भी कहने में 
.
.
.
.
तुम!!
नया सा है हमारा सम्बन्ध
फिर एक खुलापन
सा रहेगा इसमें
बिंदास सा हो जायेगा रिश्ता
हमारा .
.
.
.
. तू
इसमें नकारात्मकता है
नही ऐसे तो में कभी नही
हो पाऊंगी तुम्हारी
न ही तुम मेरे


तो अब क्या हो ?
में नाम से पुकारूंगी
आप भी मेरा कोई नाम रख लो
अपना अपना वजूद लिए हम

उम्र भर रहेगे एक दुसरे के
इस आप. तुम .तू की ओपचारिकता में क्यों पड़ना ?.........नीलिमा
.
.
.
कस्तूरी में प्रकाशित एक रचना
बिस्तर की सलवटे भी एक कहानी कहती हैं 
........................
अब हर सिलवट पेम कहानी की बयानी नही होती 
कुछ राजा- रानी की कहानी नही होती 
बिस्तर की सलवट कुछ ख़ामोशी बयां करती हैं
मन में चलते तूफ़ान बिस्तर पर बवंडर लाते हैं 
कुछ सलवटे भविष्य की कहानी होते हैं
अगले पल क्या होगा सोचती जवानी हैं ......
कुछ सलवटे अतीत की जंग लगी कील
बस गढ़ी रहती हैं सीने में
और रात के तीसरे पहर में दर्द करती हैं
कुछ सलवटे बेवफाई की होती हैं
टूट कर चाह ने वालो की रुसवाई होती हैं
बिस्तर की सलवटे अपनों की बेअदबी भी होती हैं
बिस्तेर की सलवटे टूटी नींद में भी रहती हैं
अब सलवटे कभी खामोश रहती हैं
कभी चीख चीख कर बया करती हैं अपने होने की कहानी
पर हर सिलवट कहती हैं बस एक कहानी ............
किसी के ख्वाब टूटे हैं
किसी के अपने रूठे हैं
किसी के वादे झूठे हैं
किसी के अरमान लुटे हैं ..........................
हर सिलवट की अपनी हैं कहानी
हर सिलवट नही कहती कोई एक प्रेम कहानी ........................

मंगलवार, 24 जुलाई 2012



मेरी हम नाम
तुम बिलकुल वैसे हो जैसे
मेरे नाम ने मुझे बनाया है
में भी अक्सर चाहती हु की
खामोश हो जाओ लफ्जों से
पर मेरे लफ्ज़ सुने सब
ओरो की जुबानी
मेरी हमनाम
यह कुछ पल की बात है
कुछ साँझ का आलम है
कुछ यादो ने घेरा है
कुछ अपने भी पराये होगे
कुछ पराये भी करीब आये होंगे

...उदासी है कुछ पल की
नाम की नीलिमा की तरह
कुहासा हट जायेगा
लफ्ज़ बोल उठेंगे तुम्हारे
.बस.......... देखना है इन मौन
पक्तियों में
कोण तुम्हारे अपने है लफ्जो के सानी
कोण धोध रहे है तुम्हारी इस ख़ामोशी के मानी
में कोई नही तेरी
तू कोई नही मेरी
फिर भी आज में
तुझसे बात करती हु
.
क्युकी में भी तेरी तरह
अपने नाम से ,
अपनी ख़ामोशी से
प्यार करती हु
 

एक जमाना था
माँ खाना बनती थी
पहली थाली भगवन की
दूसरी दादा दादी की लगाती थी
कुछ भी मीठा बनता था तो
पहला कोर दादी का होता था
पहला फल दादा के हाथ लगता था
हम बच्चे मुह बाये
करते थे इंतज़ार
कब दादी/दादा कह दे के
बेटा अब बस और नही चाहिए
और हम टूट पढ़े थाली पर
मिठाई और फल की कटी फांक पर
हम यु ही देखते देखते जवान हो गये
रसोई के बर्तन भी क्या से क्या हो गये
अब माँ चूल्हा नही फूक्ति उपलों वाला
अब माँ घंटो नही लगाती दाल पकाने में
आज भी रसोई माँ के ही हाथो में है
आज भी माँ के हाथ का स्वाद है उसमें
अब माँ दादी बन गये है और पापा दादा
माँ आज भी पहली थाली लगाती है .
तो वोह उनकी बहु अपने बेटे को दे आती है
स्कूल जाना है उसको भगवन तो घर पर ही रहेगा
पापा रिटायर हो चुके है ...बाद में भी खा लेंगे
भाई को ऑफिस जाना है
दूसरी थाली में जल्दी से खाना परोसती है
. मिठाई का हर भाग पहले बच्चो को जाता है
फिर उनके माता पिता को, फल भी सबसे पहले
सारा दिन मर-खप कर पैसे कमाने वाले बहु के पति को
माँ कभी अपने लिए थाली नही लगा पाई
पोते के थाली में बचे हुए खाने से ही तृप्त हो जाती है
पापा सबके जाने का इंतज़ार करते है
फिर थकी हुए माँ को सहमी सी आवाज़ में कहते है
चाय मिलेगी क्या?
लोग कहते है परिवर्तन आ गया है ..........
हाँ परिवर्तन आ ही गया है पहले माँ
भगवन और दादा/दादी की थाली लगाती थी
अब खुद दादी बनकर पहले बेटे बहु और पोते को खिलाती है
सबके जाने के बाद झूठे बर्तन समेत'ते हुए
बुदबुदाती है
क्युकी ज़माना बदल गया है .
और इस परिवर्तन के बोझ के सहते हुए
जिन्दगी को जिए चली जाती है .......................... नीलिमा शर्मा
 —
Kuch Alfaz mere
jo ghayal kar gye hai 
tumko
mai janti hu yeh 
Anjaane mai 
mayne vo na they
jo ho gye they
kaha kuch tha
kahna kuch tha
or ho kuch gya
aisa kyo ho jata aksar
darmiyan hamare


ham ek doosre ke purak hai
fir bhi anupoorak ho jate hai
kabhi kabhi


tumhare apne
jab mujhe ander tak
ghayal kar jate hai
tum deewar bankar
aksar
mere lafzo ki barish se
bacha le jate ho unhe
or khud jal jate ho
un lafzo ke ajab se



kabhi to socho
mere ander ki aag ka
rishto ko alag karke
tere mere se alag karke
ke tab yeh tezabi barish na ho
mujhe pachtawa hota hai tab aksar
jab
jab bhi
tum ajnabi bani ya to chup rah jate ho
ya bin badal ki badli sa baras jate ho mujhpar
tum seene mei dabi chinggariya to hongi
rakh mai dabi si jhulsati hue si
ab jindgi ke is raste par
tum sirf or sirf mere bankar raho na
bahut rah lia tumne apne apno ka apna hokar
ab tto khuda ka sarmaya hai k
mere lafzo mai tezabi barish na ho kabhi ................ Neelima sharma   




कुछ अल्फाज़
घायल कर गये है मेरे
तुमको
में जानती हु
अनजाने में
मायने वोह न थे
जो हो गये
कहा कुछ था
काहना कुछ था
और हो गया कुछ और
ऐसा क्यों हो जाता है
दरमियान हमारे
हम पूरक है एक दुसरे के

फिर भी अनुपूरक
हो जाते है कभी कभी

तुम्हारे अपने
जब मुझे भेद जाते है
भीतर तलक
तुम ढाल बनकर
आक्सर
मेरे लफ्जों की बारिश से
उनको बचा लेते हो
खुद भीग जाते हो उस तेजाबी बारिश में

कभी मूल्याङ्कन करो मेरे भीतर की अग्नि का
रिश्तो को अपने मेरे की तराजू से अलग करते हुए
क मेरे तेजाबी लफ्जों की बारिश न हो ......
मुझे पचाताप होता है
जब तुम अजनबी बन
चुप रह जाते हो या
बरस जाते हो
बिन मौसम की बदली की तरह
राख के नीचे दबी चिंगारियाँ होंगी ज़रूर,
झुलसती सी हफ्ती सी
इस जिन्दगी के रस्ते पर
अब तुम सिर्फ मेरे होकर रहो .........
बहुत रह लिए अपनों क लिए .........
अब मेरे अपने जन्मो क
अपने बन जाने का वक़्त आया है
मेरे लफ्जों की तेजाबी बारिश हो कम
.खुदा का ही अब सरमाया है
 —


Kash !!!
yeh barissh
kam na ho
Kabhi

Barasti rahe yu hi
boond -dar-boond
Mere Tan Man ko
Bhigoti si


Tum Suraj sa
dhahkate ho
Mai badal ban
jati hu baras



meri purnam aankhe
tumko
majboor kar jati hai tab

aksar
chipne ko
baadlo ki aot mei

Mujhe RImjhim pasand hai
or Apne kamre ki khuli khirki
Or baarish mai bheegte hue "Tum

"काश
यह बारिश
कम
न हो
बरसती रहे यु
बूँद दर बूँद
मेरे तन -मन को
भिगोती सी

तुम सूरज सा
दहकते हो
में बादल सी
बरस जाती हु
मेरी नाम आँखे
तुमको मजबूर
कर जाती है तब
अक्सर
छिपने को
बादलो की परतो में
मुझे रिमझिम पसंद है
और खुली खिरकी
अपने कमरे की ....................
और बारिश में भीगते हुए तुम
 —

सोमवार, 16 जुलाई 2012

लौट आओ




लफ्जों के कोलाहल में
सांसो का सन्नाटा है
समंदर सी गहराई भीतर
भावनाओ का ज्वार-भाटा है

ख़ामोशी पसरी है चारो और
बस डूबते तारे के धड़कने की आवाज़
मधुर संगीत की तरह..,
सुगंध लिए ..उसकी . मेरा मन
अजन्मी अतृप्त इच्छाएं भी

कशमकश में अटकी हुई.....
याद के धागे बनाकर
हर एक लम्हा..
बुनती हु उसकी स्वेटर
हवाए भी खटखटा रही है
मेरे मन का सूना ,
अनदेखा वोह कोना ....................

........
सुनो न लौट आओ .
बहुत होते है 15 दिन!!


गुरुवार, 14 जून 2012


निर्निमेष अंखियो से तकती  में
 बार बार
 बारम्बार
 दिन रात
 हर बार

बेचैन सी
 हर करवट बदलती
 झाकती हुए अपनी
 चेहरे की  झुर्रियो से


 तेरी एक बूँद को  तरसती
 अरे ओ आसमा मेरे

में
  सहरा बनी हु
प्यास है तेरी
 याद करती हु
 बंद पलकों में
 तेरी अनवरत,
तृप्त करती
प्रेम सुधा सी
बूंदों को

 जी लो लूंगी में
 मर मर कर
 तेरे बिन
 पर जानते हो तुम
 तुम बिन प्रजनन
 नही होगा
 सो
 बरस जाओ मुझे पर
 मिटा दो आग
मेरे सीने में धधकती है जो
बहुत दिखा लिया तुमने रोष
 देखो अब आंसू सुख  गये है
 सब रित गया है भीतर मेरे

.
 में माँ हु धरती माँ

 कैसे सृष्टि बचेगी तुझबिन
 नही पूरण
ओ पूरक मेरे तुझ बिन .
 अब तो बरस जा
 मेरे  मेघ मल्हार ............................................... नीलिमा शर्मा

बुधवार, 23 मई 2012

मौन इक भाषा है जो
बोली जा सकती है
अपनी भावभंगिमाओ से
अपने स्मित अधरों से
अपने अंन्खो से
अपनी देह्चाल से
कोण कहता है तुम मौन हो
तुम बोल रहे हो
अपनी शरारती आँखों से
अपनी होंतो पर थिरकती हसी से
अपने अलबेली चाल से
बच्चा कितना भी चुप रहे
माँ
पढ़ ही लेती है उसके मन की हर भाषा .......................:))))

में धुप हु
मुझे बिखरना है
सोना बनकर
इस दुनिया में
मत कैद करो मुझे
अज्ञान क अंधेरो में
मुझे जीना है
चांदनी बनकर
लिखना है अपना नाम
आसमान की उचाई पर
मुझे जीने का हक दो
मुझे पढने का हक दो
मत बंधो अभी रिश्तो के
अनचाहे बन्धनों में ...............................
ज़रा पाँव तो जमने दो .
. कुछ दूर तो खुद चलने दो
रिश्ते भी ओढूगी ..
और छांव जी भर दूंगी ..
बस कुछ पल तो सम्हलने दो..
ये दूरियां तय करने दो

(last 6 lines by Neetta Porwal)
 
मेरे मन है कितना सच्चा मेरे मन है कितना सच्चा
रहता है इस में एक बच्चा
बचपन कब का छूट गया
केशोर्य भी तो रूठ गया
आज भी यह मचलता है
जब भी होने लगती है जिन्दगी बदरंग
करने लगता है हुढ़दंग
...........
सपने अपने अब अपने कहा रहे
अपने भी अपने अब अपने कहा रहे
में वोह भी नही जो रही थी कभी
बदल गयी है दुनिया मेरी सभी
आँखे बंद करके देखा करती हु नवरंग
जब मेरा बचपन करता था हुढ़दंग
.............
जी लेते है हम जिन्दगी अपनी
बच्चे की मानिद
जब पाते है गोदी में
एक अपना सा बचपन
खुश होकर तालिया
बजा कर
कूकता है तब
मेरे अंदर का बच्चा
पूरे होते है सपने उसके सतरंग

मेरे अंदर का बच्चा
करता है तंग

अंदर ही अंदर करता है हुड़दंग ।:))))))))))))))))))))))


सोमवार, 16 अप्रैल 2012


Aaj lout aao tum jaldi se
k  yeh dil jid par utar aaya hai.


. Somvar ki subah se  shanivar ki sham talak 
tumne sirf meethi baato se 
 mere jee ko bahlaya hai 
 yeh dil zid par utar aaya hai .. 

jimmedariya bhi bahut hai  
to meri dushwariya bhi bahut
 dil jo hamne tumko diya  
badle mai dard-e-dil hi paya hai  
yeh dil zid par utar aaya hai 



 shikwe/shikayate  bhi karne hai
 bahut meethi manuhaare bhi hai karni
jara khirki se bahar jhank kar dekho
chandni rat ka ghana saya hai 
yeh dil zid par utar aaya hai 


Roti hai ankhe par  lab bhi muskate hai
 bachche bhi subak kar so jate hai
janti bhi hu  nhi rah sakte ek sath ham
k   is ghar mai buzurgo ka saya hai 
par kambakhat dil zid par utar aaya hai 



 bujurgo ki sehat,bachcho ki parai
unka bhavishya banane ki ghari aai
umar beet rahi meri bhi tere hijar mai
par tera man kyu pathraya hai 
or mera dil bagawat par utar aaya hai





 ajeeb si hai kashmkash
.or kashmash mai tum ham 
 jante hai ham bebasi dil ki  
par dil kyu itna ghabraya hai
Rabba  yeh dil zid par utar aaya hai 




 ..(yeh poetry maine tab likhi thi jab mere hubby ki posting CHAMBA  mai thi or mai yaha dehradun mai parents-in-law & bachcho sang thi )

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012


मुह  फुलाए देखता रहता था  मेरा कालू गोरु टीवी
जब जब मे खोलती थी कबार    रूम का दरवाज़ा
 धुल से अत्ता हुआ ................ कब्बार से सता हुआ
 मेरा प्यारा प्यारा काला गोरु टीवी................
 कितनी खुशिया दी थी इसने
 हम लोग, महाभारत ,रामायण  ओर एक कहानी
विडिओ गेम जोर कर मैंने सीखी इस पर कार चलानी
वी. सी.आर. क तार लगा कर देखे  रात भर चलचित्र
रंगीन  टीवी क आते  ही न रहा कोई इसका मित्र
बाई ने भी हाथ हिलाया , कबारी ने भी  कोई मोल न पाया
आज देखो इसका मन कैसे खुशी सेपागल कालू गोरु मेरा
जब से मोत्ते रंगीन टीवी ने डाला इसकी बगल मई डेरा
कितने दर्प से उसने  इसको...............
 बैठक से निकल शयनकक्ष मई जगह बने थी
 यही नही साथमें  साथियों की टीम हर कमरे में   बसी थी

.
 आअज उसको साथ मई देख कालू गोरु बोला
 जानता था में एक दिन  हश्र एक दिन तेरा भी यह होगा
जितनी जिन्दगी हम दोनों ने इस घर में
 पाए है
 उतनी उम्र इस नए मेहमान की किस्मतमें  नही आई है
 कुछ बरस भी नही लगेगे जब वोह भी होगा यहाँ पर
बदल रही है यह फास्ट दुनिया नही लम्बी उसकी भी उम्र
 सुनकर उन दोनों की बाते मेरा मन घबराया
क्षण  भगुर जीवन की  उफ़ यह कैसे है माया

लालसा मई नित नए की हम रोजाना चलते जाते है
क्यों नही हम मानव खुस को समझाते है
 पर आखिर तो में  भी  एक अदना सी  नारी
 झटक कर गर्दन अपनी  मैंने ताला  लगाया भारी
 जल्दी से     मैंने  l.सी दी  रेमोते का नक् दबाया
"बारे अच्छे लगते है " का नया episode jo है आया.
:)))))))







मंगलवार, 31 जनवरी 2012

जिन्दगी के कुछ पुराने पन्ने

kuch panne jindgi ke

आज न जाने क्यों  आँखे भर आई मेरी 
जब मैंने  पलटे जिन्दगी  के कुछ पुराने पन्ने
कुछ कितने रंगीन थे कुछ कितने सुने 
 चाहा था  क्या मैंने  
 पाया है क्या मैंने 
 उलझ गये है सब ताने बने 
मैं   खुद भी भी नही रही मैं 
  खो गयी हु कहा  न जाने 
कभी हर लफ्ज़ में शामिल थी 
 एक खुशबू की तरह 
अब हर हर्फ में एक रुआन्सपन 
चल रे ओ मेरे मन
.... जो बीत गया सो सो बीत गया 
 अब आगे ही सोच
कुछ वरके अब भी कोरे  
जिन्दगी की किताब में मेरे 
 एक नया इतिहास लिखना  है
अपनी जिन्दगी का मुझे
  अश्क पोंछकर अपने
सीपियो की कलम  बनाकर 
 समंदर की स्याही से
मन की गहरे भावो को 
  लफ्ज़ देने है मैंने 
आओ पढ़ लो तुम भी   यारा
वोह कोरे कोरे पन्ने !!!!



जिन्दगी में  वोह कोरे रह गये सपने
 लिखने से रह गये जो मेरे अपने पन्ने

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

Birth of a poetry

हर बार नही ढलते
शब्द उस सांचे में
जब लगती है दूसरों की
पीड़ा सबको अपनी .
कागज़ का टुकड़ा
छटपटाहट लिए
रोता है तब
कलम भी थक जाता है
बताकर लाचारी अपनी
मौन रह जाता है अंतर्मन
और आँखें सूनी
कोलाहल सा मच जाता है
ह्रदय में तब मेरे
कसमसाते शब्दों की
पीड़ा कैसे समझाउं अपनी
एक अक्स लकीरों का
कुछ आड़ा कुछ सीधा सा
कुछ बिलकुल सपाट लहजे में
कुछ प्रेमरस से बिंधा सा
शब्दों की गुत्थाम्गुत्थी में
प्रसव पीड़ा झेल रही है
एक छोटी सी ,एक नन्ही सी ,

.
एक प्यारी सी



. कविता मेरी अपनी