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जून, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कोई फर्क पढता हैं क्या!!!

पेड़ तूने काटे नाम कहर पहाड़ का रख दिया

कोल्हू का बैल औरत की जात

एक अदद कफ़न भी न मयस्सर हुआ सैलाब से

अत्तिवृष्टि (देवभूमि ही आज मोहताज हैं देवकृपा को )

समंदर

बहुत आत्म मुग्धा हो रही हूँ