रविवार, 30 जून 2013

कोई फर्क पढता हैं क्या!!!

 कोई फर्क पढता हैं क्या!!! 
 मेरे कह देने 
 तुम्हारे सुन लेने से 
 
समझना जिसको जितना हैं 
 वोह खुद भी 
 उतना ही समझेगा !!!


  निरर्थक  वार्तालाप 
 फासले बढाता हैं 
 सदिया लग जाती हैं 
 जिनको दूर करने  में 

 सो क्या फर्क पड़ता हैं 
 मेरे रो देने से 
 तुम्हारे चुप रह जाने से 


 होगा तो व्ही न 
 जो तुमने सोचा हैं 
चुपचाप अकेले  में .!!!!!!!.........नीलिमा 

koi farq padhta hain kya ? 
 mere kah dene se 
 tumhaare sun lene se !!!


 samajhna jisko jitna  hain 
 woh khud  bhee
utna hi samjhega !!!

 befizool bahasbaazi 
 fasle badati hain 
 sadiyaa lag jaati hain 
 jinko dur karne mein !

 so kya farq padhta hain 
 mere ro dene se 
 tere chup rah jaane se !!


 hoga to wahi na 
 jo tumne socha hain 
 chupchaap  akele mein !!!!!!by neelima sharma 

गुरुवार, 27 जून 2013

पेड़ तूने काटे नाम कहर पहाड़ का रख दिया






तू क्या हैं /?? क्या होना चाहता था अभी !
 इंसान के बोलने से पहले इश्वर  खेल खेल गया
~~
कैसे  तेल का दिया   जलाऊ  अपने आँगन में
 उनके घर का तो चिराग ही  बुझ गया
~~
अभी तक सिर्फ पठारों  में जीते थे हम
 अब तो सीने पर ही पत्थर रख दिया
~~
 रोती हुए   आवाज़े  सिसकियो मैं बदल रही हैं
 लोग कहते हैं  उसने अब सब्र कर लिया
~~
कोई देखे तो आकर  उसके सूखे आंसुओ को
 जिसने  पति बेटे के साथ  पोते को भी खो दिया
~~
मातम पुरसी को जमा हैं बहुतेरे लोग
  बरसात का   मौसम बीज बेबसी के बो गया
~~
 दूर बैठ  कर देखना त्रासदी को  बहुत आसान  हैं
  महसूस करना  उस प्रलय को आंदोलित कर गया

~~
मेरे घर में बचे हैं बस अब कुछ यादे और  सिसकिया
कैमरे वालो ने  आकर उनको भी सरेआम कर दिया
~~~
अपनों के जाने के गम को दरकिनार कर बचायी थी कितनी जाने
 फिर भी मुसाफिरो  ने जाते जाते   मेरा नाम चोर रख दिया
~~~
अब तू ही बता  ए  मैदान के   बाशिंदे
पेड़ तूने काटे  नाम कहर पहाड़ का रख  दिया
~~~

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~  Written by Neelima
 sharrma

रविवार, 23 जून 2013

कोल्हू का बैल औरत की जात

गुलाबी सपने 
लाल जोड़ा 
धानी चूड़ियां 
काजल के साथ 

सपने सलोने 
पिया मन मोहने 
रात चांदनी 
दिल की बात 

बैंड बाजा बरात
जयमाला का साथ
फेरो की मंत्रो ध्वनि
अचानक वज्रपात

सेहरे का हटना
दुल्हे का पलट'ना
कार छोटी ,लड़की मोटी
निर्णय अकस्मात्

पिता की पगड़ी
आँखों मैं आंसू
रकम की तगड़ी
जोड़ कर दोनों हाथ

आँखों में आंसू
मन में शंकाए
सहमी सी दुल्हन
अरमानो में घात

सुहाग की सेज
अकेली दुल्हन
ताने उल्हाने
सूनी सी रात


परदेस वापिसी
दुल्हन अकेली
बूढ़े ससुराली
नौकरों सी बात

मायका बेपरवाह
कर दी हैं शादी
निभाना ही होगा
खाकर जू ते लात

छल किसी का
बलि किसी की
कोल्हू का बैल
औरत की जात

शुक्रवार, 21 जून 2013

एक अदद कफ़न भी न मयस्सर हुआ सैलाब से

बक्सा भरा था जिसका कीमती रुपहले कपड़ो से 
एक अदद कफ़न भी न मयस्सर हुआ सैलाब से
~~~

फूलो की तरह पाला/चाहा था जिस माँ ने 
बेटा माला तक न पहना पाया उस देह को
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कितने चाव से बनाया था बेटी की शादी का जोड़ा
हाथ कन्या दान से पहले प्रलय ने छुड़ाया हैं क्यों

~~~~~
कहती थी मेरी उम्र भी तुम्हे लग जाए व्रत करती हूँ
सच करके आज अपने शब्दों को देखाया उसने

मंगलवार, 18 जून 2013

अत्तिवृष्टि (देवभूमि ही आज मोहताज हैं देवकृपा को )

    
 

1> तड़प कर भूख से 
 बिलखते बच्चे को 
 माँ यह कह कर बहलाती हैं 
 बस जरा नदी का पानी उतर जाए 
 माँ तेरे लिय दूध लाती हैं 
 पहाड़ कितने सुन्दर हैं  ना 
 देख तो जरा उधर   पेड़ पोंधो को 
 पानी में घोल कर  सुगर फ्री की गोलिया 
कपडा चड़ा  बच्चो की बोतल भर लाती हैं 
 बाबा जी इस बार घर बुला लो सही सलामत  
  नम  आँखों से दुआ  को बार बार  दोहराती हैं 
  कबि अपने बेटे की कभी सास के बेटे की 
  जिन्दगीके वास्ते मन्नते हजार माना ती हैं 
 पैसे को बहुत कुछ समझने वाली पीढ़ी भी 
आज कुदरत के कहर के आगे विवश हो जाती हैं 

 बस जरा नदी का पानी उतर जाए 
 तेरी माँ अभी  तेरे लिय दूध लाती हैं 


2.अत्तिवृष्टि 
संकेत हैं 
ख़तम होने वाली हैं
सृष्टि
हर मानव को
अपनी अपनी पड़ी हैं
तबाही आज इसीलिये
हमारे सामने ख ड़ी हैं
दोष देकर दूसरो को
हाथ झाडे दुनिया बड़ी हैं
भूल गये चिपको आन्दोलन
अपनी भूमि को तब नारी ही लड़ी हैं
सुन्दर लाल बहुगुणा की बात न सुनी
जमीन खेती की बेचने पर अड़ी हैं
खाते हैं निवाले बाहर के लोग घी से
अपने पहाड़ की नारी तो झालो में पड़ी हैं
देवभूमि ही आज मोहताज हैं देवकृपा को
हर बशिन्दे की गर्दन आज सजदे में झुकी हैं
 —

शुक्रवार, 14 जून 2013

समंदर

जानते हो ना तुम

यह जो समंदर हैं न
कितना शोर करता हैं
इसकी लहरे आती हैं
जाती हैं एक शोर के साथ
कोई नही जानता
इसके भीतर क्या हैं
एकदम शांत सा कभी
तो दहाड़ता हुआ कभी

ठीक इसी तरह
फितरत हैं इंसान की

और भीतर के शोर में
वोह खामोश नही रहना चाहता
क्युकी अक्सर खामोस्शियो में
खुद से संवाद होता हैं
और इंसान डरता हैं
खुद से किये जाने वाले साक्षात्कार से
वोह ढूढता हैं
अपने आसपास
कोलाहल
खुद को भूल जाने के लिय

समंदर जितना गहरा भी हैं इंसान
पर उथला भी ..........Neelima Sharrma

रविवार, 2 जून 2013

बहुत आत्म मुग्धा हो रही हूँ

मेरे हर प्रेम निवेदन के
आक्रोश के
संतोष के
विक्षोभ के
केंद्र में तुम रहते हो
एक बिंदु की तरह तुम
स्थिर रहते हो अपने स्थान पर
और मैं भिन्न भिन्न कोणों से
तुम पर व्यक्त करती हूँ अपने सारे भाव
और तुम अटल से अडिग रहते हो
अपनी परिधि पर
मैं कभी त्रिभुज मैं कभी वर्गाकार सी
घेरे रखती हूँ तुम्हे अपने सवालो से
तुम निर्मय भी हो मेरे जीवन के रेखागणित की
तो प्रमेय भी
मेरा हर समय तुम्हे कटघरे मैं खड़े कर देना
तुमको आत्मसात होता होगा
परन्तु हर प्रीत /आक्रोश समर के पश्चात्
मुझे आत्म ग्लानी होती हैं
अपने शब्दों पर
मैं शर्मिंदा हो जाती हूँ
तुम्हारी धीरता से
आडिगता से
सुनो न
कभी मुझे भी केंद्र बिंदु मैं रखो
अपने सवालों के
आरोपों-प्रत्यारोपो के
केंद्र में
और घुमाओ मुझे भी इस परिधि पर
मुझे भी आत्म विवे चना करने दो
बहुत आत्म मुग्धा हो रही हूँ मैं .............................