मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

एक टुकड़ा धूप



एक कोना 
अपना 
जिसमें 
छुपाये हैं 
मैंने 
ना जाने 
कितने
पुलकित क्षण
द्रवित मन
आंसुओ की बारिश
दोस्तों की साजिश
अकेलेपन की यादे
मिलन की बाते
,
,
,
आज वोह कोना
बगावत कर रहा हैं
उसे भी साथ
चाहिए
उसके भीतर की
सीलन को भी
एक टुकड़ा धूप चाहिए
नीलिमा शर्मा निविया





















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

नियति हैं नारी की

हर लड़की बीजती हैं सपने यौवन की दहलीज़ पर सलोने से सजीले से सुनहरे सपने और फिर बंद कर उनको मुठी में चली आती हैं साजन की देहरी पर और बिखेर देती हैं उनकी खुशबू अपने आस- पास सपने अंकुरित होंगे या नही निर्भर रहता हैं मिलने वाले प्यार पर कुछ के सपने मिटटी में ही दम तोड़ देते हैं और कुछ अंकुरण की कोख से बाहर ही निकाल पाते हैं कुछ सपने पल्लवित ,पुष्पित होने से पहले रौंद दिए जाते हैं फिर भी लडकिया सपने बीजना बंद नही करती सपनो की क़िस्म बदल जाती हैं बस और फसल का उगने का बेसब्री से रहता हैं इंतज़ार उनको और अछि फसल के लिय मन्नते / व्रत हजारो करती हैं क्युकी तब वोह लडकियां नही रहती माँ बन जाती हैं , बीबी बन जाती हैं और उनके सपने अपने लिय नही अपनों के लिय होते हैं बीजना और फसल उगाना . नियति हैं नारी की


















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

मुझे उड़ना हैं बहुत दूर तलक





 क्या मैं शब्दों की जादूगर हूँ !!! 

क्या मैं अग्रसर हूँ 


लेखिका  बन जाने की दिशा में !! 


ठिठकी हूँ मैं लफ्जों के द्वार पर 


अक्सर मिलते हैं जब मुझे 


कमेंट अपने लिखे शब्दों के जोड़ पर 


तब सोचती हूँ मैं हैरान सी 



मैंने तो ऐसा कुछ भी नही लिखा 


की इतना आगे बढ़कर उनको सराहा जाए 


मेरे लिखे शब्दों को मेरे सर पर चदाया जाए 


मैं बस अपने लिय अपने मन का लिखती हूँ 


कुछ खुशिया/ दर्द आस- पास से चुनती हूँ 


लफ्जों का लिबास पहना कर करीने से सहेज लेती हूँ 


सहेजने की मेरी भी एक सीमा हैं मेरा एक अपना तरीका 


पर कैसे कह देते कुछ लोग स्तर हीन ही लिखती हूँ

 
मैं नीलिमा हूँ और मैं स्वतंत्र आकाश की मालकिन भी 


अपने हिस्से के सितारे चुनकर स्वप्निल स्नेहिल दुनिया रचती हूँ 



कोई सितारा चमक उठ'ता हैं तो अच्छा लगता हैं सबका सरहाना 


कोई बुझा सितारा जब आता हैं झोली में तो अजीब लगता हैं वाह सुन इतराना 


मैं मैं हूँ बस अपने लफ्जों भावो की स्वामिनी 


मुझे उड़ना हैं अपने आकाश की परिधि में 


सच जानकार आपने पंखो की परवाज़ का 


मुझे झूठ न बताओ मुझसे सच न छुपाओ 



मेरी पंखो की उडान अभी कहाँ तक हैं 


और उड़ने का हौसला कहा तक हो 


इसका मुझे आभास दिलाओ 





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..

मुझे उड़ना हैं बहुत दूर तलक







आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु