मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

आखिरी लम्हे







आखिरी लम्हे
खोया तो बहुत मैंने
पाया बहुत कम
समय अपनी चाल से
चलता रहा चाले 
और मैं मूक अवाक सी
देखती रही
उसकी धोखा धडी
और बहुत पीछे रह गयी
.
.
अपने से
अपनों से
उनसे जुड़े
अपने हर सपने से
___________________ नीलिमा शर्मा Nivia
















आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

बुधवार, 17 दिसंबर 2014

गर्माहट लफ्जों की



उन लम्हों को कैसे भूल जाए 
जब एक एक फंदा 
सलाई पर बुनती थी 
तुम्हारा नाम लेकर 
ऊनी दुशाले 
और तुम उसे लपेटे रहते थे 
अपने चारो तरफ
दिसम्बर की धूप / कोहरे में भी
आज
ना मेरे पास
वोह ऊनी धागे हैं
न सलायिया
बस अहसास भरे हैं भीतर
अब बुनती हूँ उनसे
प्यार से भरे / भीगे
हर्फो का शाल
गर्माहट लफ्जों की मेरे
ऊनी धागों से कमतर तो नही ......................
नीलिमा शर्मा Nivia




आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु