मंगलवार, 31 जनवरी 2012

जिन्दगी के कुछ पुराने पन्ने

kuch panne jindgi ke

आज न जाने क्यों  आँखे भर आई मेरी 
जब मैंने  पलटे जिन्दगी  के कुछ पुराने पन्ने
कुछ कितने रंगीन थे कुछ कितने सुने 
 चाहा था  क्या मैंने  
 पाया है क्या मैंने 
 उलझ गये है सब ताने बने 
मैं   खुद भी भी नही रही मैं 
  खो गयी हु कहा  न जाने 
कभी हर लफ्ज़ में शामिल थी 
 एक खुशबू की तरह 
अब हर हर्फ में एक रुआन्सपन 
चल रे ओ मेरे मन
.... जो बीत गया सो सो बीत गया 
 अब आगे ही सोच
कुछ वरके अब भी कोरे  
जिन्दगी की किताब में मेरे 
 एक नया इतिहास लिखना  है
अपनी जिन्दगी का मुझे
  अश्क पोंछकर अपने
सीपियो की कलम  बनाकर 
 समंदर की स्याही से
मन की गहरे भावो को 
  लफ्ज़ देने है मैंने 
आओ पढ़ लो तुम भी   यारा
वोह कोरे कोरे पन्ने !!!!



जिन्दगी में  वोह कोरे रह गये सपने
 लिखने से रह गये जो मेरे अपने पन्ने

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

Birth of a poetry

हर बार नही ढलते
शब्द उस सांचे में
जब लगती है दूसरों की
पीड़ा सबको अपनी .
कागज़ का टुकड़ा
छटपटाहट लिए
रोता है तब
कलम भी थक जाता है
बताकर लाचारी अपनी
मौन रह जाता है अंतर्मन
और आँखें सूनी
कोलाहल सा मच जाता है
ह्रदय में तब मेरे
कसमसाते शब्दों की
पीड़ा कैसे समझाउं अपनी
एक अक्स लकीरों का
कुछ आड़ा कुछ सीधा सा
कुछ बिलकुल सपाट लहजे में
कुछ प्रेमरस से बिंधा सा
शब्दों की गुत्थाम्गुत्थी में
प्रसव पीड़ा झेल रही है
एक छोटी सी ,एक नन्ही सी ,

.
एक प्यारी सी



. कविता मेरी अपनी