मौन लफ्ज़
बुत बन गयी
जिन्दा ही
अपनों के आगे
गुनाह हो गये
उसके मौन लफ्ज़
और गर्त हो गयी
जिन्दगी
ख़ामोशी
अब हुनर जो नही रही
शौंक बन रही हैं
नीलिमा शर्मा
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु
जिन्दा ही
अपनों के आगे
गुनाह हो गये
उसके मौन लफ्ज़
और गर्त हो गयी
जिन्दगी
ख़ामोशी
अब हुनर जो नही रही
शौंक बन रही हैं
नीलिमा शर्मा
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (31.07.2015) को "समय का महत्व"(चर्चा अंक-2053) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव है आपकी कविता में।
जवाब देंहटाएंस्वयं शून्य