तुम्हारे ख़त !!!
तुम्हारे ख़त !!!
जब भी कभी
किताबो के पीछे
नीले लिफाफे में रखे
तुम्हारे ख़त
सबसे छुपकर
पढ़ती हूँ न
फुरसत से,
तो खुद को
लफ्जों में
लिपटा हुआ पाती हूँ
हर दो लफ्जों के बीच में
जो जरा सा स्पेस होता हैं
वहां महसूस करती हूँ
वजूद अपना
तुम्हारे लफ्जों में जुडा सा
जब साँस लेती हूँ
उन शब्दों के मध्य
तो खुद को पाती हूँ
एक आलोकिक
स्वर्ग सरीखे लोक मैं
तुम्हारे स्पर्श को महसूस करते हुए
जहा मेरा वजूद जमीन पर होता हैं
और सोचे आसमान पर ...................neelima
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जब भी कभी
किताबो के पीछे
नीले लिफाफे में रखे
तुम्हारे ख़त
सबसे छुपकर
पढ़ती हूँ न
फुरसत से,
तो खुद को
लफ्जों में
लिपटा हुआ पाती हूँ
हर दो लफ्जों के बीच में
जो जरा सा स्पेस होता हैं
वहां महसूस करती हूँ
वजूद अपना
तुम्हारे लफ्जों में जुडा सा
जब साँस लेती हूँ
उन शब्दों के मध्य
तो खुद को पाती हूँ
एक आलोकिक
स्वर्ग सरीखे लोक मैं
तुम्हारे स्पर्श को महसूस करते हुए
जहा मेरा वजूद जमीन पर होता हैं
और सोचे आसमान पर ...................neelima
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
shukriya shashi ji
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मदन मोहन जी
हटाएंशुक्रिया श्री राम जी
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