समंदर
जानते हो ना तुम
यह जो समंदर हैं न
कितना शोर करता हैं
इसकी लहरे आती हैं
जाती हैं एक शोर के साथ
कोई नही जानता
इसके भीतर क्या हैं
एकदम शांत सा कभी
तो दहाड़ता हुआ कभी
ठीक इसी तरह
फितरत हैं इंसान की
और भीतर के शोर में
वोह खामोश नही रहना चाहता
क्युकी अक्सर खामोस्शियो में
खुद से संवाद होता हैं
और इंसान डरता हैं
खुद से किये जाने वाले साक्षात्कार से
वोह ढूढता हैं
अपने आसपास
कोलाहल
खुद को भूल जाने के लिय
समंदर जितना गहरा भी हैं इंसान
पर उथला भी ..........Neelima Sharrma
यह जो समंदर हैं न
कितना शोर करता हैं
इसकी लहरे आती हैं
जाती हैं एक शोर के साथ
कोई नही जानता
इसके भीतर क्या हैं
एकदम शांत सा कभी
तो दहाड़ता हुआ कभी
ठीक इसी तरह
फितरत हैं इंसान की
और भीतर के शोर में
वोह खामोश नही रहना चाहता
क्युकी अक्सर खामोस्शियो में
खुद से संवाद होता हैं
और इंसान डरता हैं
खुद से किये जाने वाले साक्षात्कार से
वोह ढूढता हैं
अपने आसपास
कोलाहल
खुद को भूल जाने के लिय
समंदर जितना गहरा भी हैं इंसान
पर उथला भी ..........Neelima Sharrma
बिलकुल सही कहा .... मन समंदर जैसा ही होता है ।
जवाब देंहटाएंthank u Sangeeta ji
हटाएंआपकी यह रचना कल शनिवार (15 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंshukriya Arun ji deri se aane ke liy kshama chahti hun
हटाएंसच मन समंदर की तरह होता है
जवाब देंहटाएंगंभीर,ज्वार भाटा की तरह
सुंदर अभिव्यक्ति
बधाई
आग्रह है- पापा ---------
shukriya jyoti ji
हटाएंकोमल अहसास लिए भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
Thank u Reena ji
हटाएंमन भी अगाध है समुद्र की तरह!
जवाब देंहटाएंthank u pratibha ji
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