अत्तिवृष्टि (देवभूमि ही आज मोहताज हैं देवकृपा को )
1> तड़प कर भूख से
बिलखते बच्चे को
माँ यह कह कर बहलाती हैं
बस जरा नदी का पानी उतर जाए
माँ तेरे लिय दूध लाती हैं
पहाड़ कितने सुन्दर हैं ना
देख तो जरा उधर पेड़ पोंधो को
पानी में घोल कर सुगर फ्री की गोलिया
कपडा चड़ा बच्चो की बोतल भर लाती हैं
बाबा जी इस बार घर बुला लो सही सलामत
नम आँखों से दुआ को बार बार दोहराती हैं
कबि अपने बेटे की कभी सास के बेटे की
जिन्दगीके वास्ते मन्नते हजार माना ती हैं
पैसे को बहुत कुछ समझने वाली पीढ़ी भी
आज कुदरत के कहर के आगे विवश हो जाती हैं
बस जरा नदी का पानी उतर जाए
तेरी माँ अभी तेरे लिय दूध लाती हैं
2.अत्तिवृष्टि
संकेत हैं
ख़तम होने वाली हैं
सृष्टि
हर मानव को
अपनी अपनी पड़ी हैं
तबाही आज इसीलिये
हमारे सामने ख ड़ी हैं
दोष देकर दूसरो को
हाथ झाडे दुनिया बड़ी हैं
भूल गये चिपको आन्दोलन
अपनी भूमि को तब नारी ही लड़ी हैं
सुन्दर लाल बहुगुणा की बात न सुनी
जमीन खेती की बेचने पर अड़ी हैं
खाते हैं निवाले बाहर के लोग घी से
अपने पहाड़ की नारी तो झालो में पड़ी हैं
देवभूमि ही आज मोहताज हैं देवकृपा को
हर बशिन्दे की गर्दन आज सजदे में झुकी हैं
—सृष्टि
हर मानव को
अपनी अपनी पड़ी हैं
तबाही आज इसीलिये
हमारे सामने ख ड़ी हैं
दोष देकर दूसरो को
हाथ झाडे दुनिया बड़ी हैं
भूल गये चिपको आन्दोलन
अपनी भूमि को तब नारी ही लड़ी हैं
सुन्दर लाल बहुगुणा की बात न सुनी
जमीन खेती की बेचने पर अड़ी हैं
खाते हैं निवाले बाहर के लोग घी से
अपने पहाड़ की नारी तो झालो में पड़ी हैं
देवभूमि ही आज मोहताज हैं देवकृपा को
हर बशिन्दे की गर्दन आज सजदे में झुकी हैं
बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (19 -06-2013) के तड़प जिंदगी की .....! चर्चा मंच अंक-1280 पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
भगवन का कहर ऐसा बरस रहा कि वो अपना निवास भी तहस नहस कर रहा है ..........:(
जवाब देंहटाएंआपके पोस्ट में दर्द उभर कर आ रहा है...
काश जल्दी से जल्दी सब सही हो जाये.....
पहाड़ का दर्द उकेर दिया इन पंक्तियों में ...
जवाब देंहटाएंसारी आपदाएं नारी के हिस्से में ही तो पड़ी हैं ,
जवाब देंहटाएंपहाड़ की हो चाहे मैदान की, किस अन्याय की मार उस पर नहीं पड़ी है !
dard ko ubhar kar rakhdiya apki kavita ne
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