पेड़ तूने काटे नाम कहर पहाड़ का रख दिया
तू क्या हैं /?? क्या होना चाहता था अभी !
इंसान के बोलने से पहले इश्वर खेल खेल गया
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कैसे तेल का दिया जलाऊ अपने आँगन में
उनके घर का तो चिराग ही बुझ गया
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अभी तक सिर्फ पठारों में जीते थे हम
अब तो सीने पर ही पत्थर रख दिया
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रोती हुए आवाज़े सिसकियो मैं बदल रही हैं
लोग कहते हैं उसने अब सब्र कर लिया
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कोई देखे तो आकर उसके सूखे आंसुओ को
जिसने पति बेटे के साथ पोते को भी खो दिया
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मातम पुरसी को जमा हैं बहुतेरे लोग
बरसात का मौसम बीज बेबसी के बो गया
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दूर बैठ कर देखना त्रासदी को बहुत आसान हैं
महसूस करना उस प्रलय को आंदोलित कर गया
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मेरे घर में बचे हैं बस अब कुछ यादे और सिसकिया
कैमरे वालो ने आकर उनको भी सरेआम कर दिया
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अपनों के जाने के गम को दरकिनार कर बचायी थी कितनी जाने
फिर भी मुसाफिरो ने जाते जाते मेरा नाम चोर रख दिया
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अब तू ही बता ए मैदान के बाशिंदे
पेड़ तूने काटे नाम कहर पहाड़ का रख दिया
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~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ Written by Neelima
sharrma
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन हर बार सेना के योगदान पर ही सवाल क्यों - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंरोती हुए आवाज़े सिसकियो मैं बदल रही हैं
जवाब देंहटाएंलोग कहते हैं उसने अब सब्र कर लिया ..
सच के बहुत करीब है ये शेर ... सब्र नहीं आता ऐसे में कभी भी ... जिसपे बीते वो ही जाने ...
सभी शेर उस त्रादसी को बयाँ करते हुए ...