हिंदी माँ/अग्रेजी बहू
हिंदी जो थी
कभी
हिन्द के माथे की बिंदी
आज रोती हैं
अपने को
असहाय पाकर
सिसकती हैं
अपनी दुर्दशा पर
बड़े बड़े सोफों पर
बैठ कर बड़े दफ्तरों में
आज शर्मनाक सा
लगता हैं सबको
हिंदी बोलना
सबके सामने
पर घर आकर सुकून
हिंदी के अखबार
में पाते हैं
आज हिंदी का हाल
उसी बूढ़ी माँ सा
जो मालिकन है घर की
कागजात पर
पर हुकूमत अब
अंग्रेजी बहु की चलती हैं
और नामुराद सी यह बोली गिटर पिटर कर पिज़्ज़ा सी घर घर बनती हैं पेट ख़राब हो जाने पर
माँ की रसोई के में एक छोटे से कुकर में तब हिंदी की खिचड़ी पकती हैं
कुछ भी हो
जो सुकून माँ के साथ
बीबी कितनी भी लजीज
नही शांति उसके पास
और नामुराद सी यह बोली गिटर पिटर कर पिज़्ज़ा सी घर घर बनती हैं पेट ख़राब हो जाने पर
माँ की रसोई के में एक छोटे से कुकर में तब हिंदी की खिचड़ी पकती हैं
कुछ भी हो
जो सुकून माँ के साथ
बीबी कितनी भी लजीज
नही शांति उसके पास
बिलकुल सच्चाई बयाँ की है इस रचना में. सुन्दर कृति.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया निहार जी
हटाएंशुभप्रभात
जवाब देंहटाएंमैं खुश हूँ हिन्दी की वजह से आप मिली
हार्दिक शुभकामनायें
शुक्रिया विभा जी आपकी वज़ह से ही मैं आज हिंदी लिख पा रही हूँ
हटाएंआज कल तो सुकून भी बीवी के साथ मिलने लगा है ... :):)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संगीता जी :)) पर एक उम्र के बाद माँ की याद जरुर आती हैं
हटाएंनमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (15-09-2013) के चर्चामंच - 1369 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंआभार अरुण जी
हटाएंલિખકે હિદી ગુજનાગરી લિપીમે, બઢાઓ ઉસકી શાન
जवाब देंहटाएंરોમનનાગરી કો છોડ કર, ઇસકો દેના માન.
Have a Happy Hindi Divas !
आपने गुजराती में क्या लिख दिया .......शुक्रिया
हटाएंशुक्रिया लक्ष्मन बिश्नोई जी
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सन्नी जी
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