गिरह , गांठे
गिरह , गांठे
कभी मजबूत बनाती हैं
रिश्तो को
जब बंध जाती हैं मध्य
पर यही गांठे
कमजोर बनाती हैं कभी
रिश्तो को
जब बंध जाती हैं मध्य
फर्क लफ्जों का नही
महसूस करने का होता हैं
गांठो को
उनकी गिरहो को
उनके होने को
उनकी वजूद को
सच इतना कि
वक़्त रहते
हमें देखते रहना चाहिए
रिश्तो को
उनके बीच की गांठे
प्यार तोड़ रही हैं
या
जोड़ रही हैं
कोई सिरा कमजोर तो नही
गांठे दो सिरों का मेल भी
मेल में अवरोध भी ................................नीलिमा शर्मा
कभी मजबूत बनाती हैं
रिश्तो को
जब बंध जाती हैं मध्य
पर यही गांठे
कमजोर बनाती हैं कभी
रिश्तो को
जब बंध जाती हैं मध्य
फर्क लफ्जों का नही
महसूस करने का होता हैं
गांठो को
उनकी गिरहो को
उनके होने को
उनकी वजूद को
सच इतना कि
वक़्त रहते
हमें देखते रहना चाहिए
रिश्तो को
उनके बीच की गांठे
प्यार तोड़ रही हैं
या
जोड़ रही हैं
कोई सिरा कमजोर तो नही
गांठे दो सिरों का मेल भी
मेल में अवरोध भी ................................नीलिमा शर्मा
Achhi Prastuti Ka Samavesh, Muhje Bahut Achha Laga.
जवाब देंहटाएंThank You
shukriyaa
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन काम बहुत हैं हाथ बटाओ अल्ला मियाँ - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंshukriyaa Shivam ji
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार - 13/10/2013 को किसानी को बलिदान करने की एक शासकीय साजिश.... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः34 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
जवाब देंहटाएंshukriyaa Darshan ji
हटाएंगिरह जब सीधे धागे में पडती है तो प्यार तोडती है जब दो को बांधती है तो प्यार जोडती है। बढिया अलग सी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंshukriyaa Asha ji
हटाएंसच कहा आपने कि रिश्तों को टटोलते रहना चाहिए ....ताकि गांठ के प्रकार का पता चलता रहे
जवाब देंहटाएंshukriyaa Vandana ji
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंऔर हमारी तरफ से दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें
How to remove auto "Read more" option from new blog template
shukriyaa Sanny ji
हटाएंदेखने का फर्क है ... गांठे मजबूती भी देती हैं कमजोरी भी ...
जवाब देंहटाएंपर ये गांठें आएं ही क्यों ...
दशहरा की मंगल कामनाएं ...
shukriyaa Digambar ji
हटाएंsundar prastuti ..
जवाब देंहटाएंshukriyaa kavitaa ji
हटाएंवाह, क्या बात है
जवाब देंहटाएंshukriyaa Onkaar ji
हटाएंसरल सपाट जिंदगी में जब गांठे लगती है तो जिंदगी तकलीफ दायक है परन्तु टूटे बिखरे जिंदगी में यह मलहम लगता है ! रचना बहुत सुन्दर | दशहरा की शुबकामनाएं |
जवाब देंहटाएंअभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!
shukriyaa Kalipad prsaad ji
हटाएंभया नउ द्यौस नउ द्यु , लिए उरझन नौ आँट ।
जवाब देंहटाएंएक गाँठ के सुरझावत, दूजी देखे बाट ।८६३।
भावार्थ : -- नए से नभ में, नई उलझन लेकर नया दिवस उदयित हुवा । एक उलझन के सुलझी नहीं की दूसरी प्रतीक्षा में रहती है ॥
shukriyaa Neetu ji
हटाएंaabhar Arun ji
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : रावण जलता नहीं
नई पोस्ट : प्रिय प्रवासी बिसरा गया
विजयादशमी की शुभकामनाएँ .
shukriyaa Rajeev ji
हटाएंगांठे दो सिरों का मेल भी
जवाब देंहटाएंमेल में अवरोध भी ......बहुत खूब..
shukriyaa rashmi ji
हटाएंएक गंभीर विषय पर आपने कई पक्षों को सहजता से प्रस्तुत किया है। साधुवाद...
जवाब देंहटाएं