गर्माहट लफ्जों की
उन लम्हों को कैसे भूल जाए
जब एक एक फंदा
सलाई पर बुनती थी
तुम्हारा नाम लेकर
ऊनी दुशाले
और तुम उसे लपेटे रहते थे
अपने चारो तरफ
दिसम्बर की धूप / कोहरे में भी
आज
ना मेरे पास
वोह ऊनी धागे हैं
न सलायिया
बस अहसास भरे हैं भीतर
अब बुनती हूँ उनसे
प्यार से भरे / भीगे
हर्फो का शाल
गर्माहट लफ्जों की मेरे
ऊनी धागों से कमतर तो नही ......................
नीलिमा शर्मा Nivia
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-12-2014 को चर्चा मंच पर क्रूरता का चरम {चर्चा - 1831 } में दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
धन्यवाद
हटाएंsundar prastuti
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंwah didi.....kya khoob ehsas piroye hain apne rachna mey
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंधन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहर्फों का शॉल.;बहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 21 जनवरी 2016 को में शामिल किया गया है।
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
सुन्दर कविता
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