हँसी के रूप
रमती परेशान थी
इकलोती पाचवी पास
औरत थी मोहल्ले की
और पति उज्जड गवार
रात शराब के नशे मैं
उसने बक्की थी उसको
माँ- बहन की गालियाँ
. मर क्यों न गयी रमती
शरम से
.
.
रमती आज मुस्करा रही हैं
सामने पीली कोठी वाली
बाल कटी मेमसाहेब
कल रात सड़क पर
पति के हाथो पीटी हैं
माँ- बहन की गालियों के साथ
.
संस्कार किताबो के मोहताज नही होते
रमती हँस रही हैं किताबो पर
अपने पर
पीली कोठी की अभिजत्यता पर
खुद पर हँस ना बनता हैं उसका ............... नीलिमा
जवाब देंहटाएंखिलखिला कर हंसना बनता है :))
thnx vibha for reading my post
जवाब देंहटाएंthnx vibha for reading my post
जवाब देंहटाएंkya kahne hain... sanskaar kitabon se kahan mil pati hai...!!
जवाब देंहटाएंआह ......मर्मस्पर्शी
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है ... बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंक्यूँ कि तस्वीरें भी बोलती है - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत संक्षेप में , बहुत ही अच्छा लिखा |
जवाब देंहटाएंसादर
धन्यवाद ..... तहे दिल से आपकी आभारी हूँ
जवाब देंहटाएंMukesh kumar sinha jee
Dr Monika Sharma jee
Shivam mishra jee
Akash Mishra jee
क्या खूब कहा आपने ।
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