प्रार्थना

अभी 
पिछले कुछ बरस तक 
मैं नास्तिक थी 
नही मानती थी 
नही जानती थी 
अस्तित्व को तेरे 

नितांत अपरिचित 
तुम्हारी माया से 
उलझी रहती थी
अपनी मोह माया से

तुमने जिन्दगी की
पहाड़ियों से
घाटियों तक
समंदर से
चोटियों तक
जिन्दगी के सारे
आयाम दिखा दिए

तुमने जो दिया तेरी कृपा
जो न दिया वो अनुकम्पा
जो मेरे लिये सही
वही दिया
मेरे लिए नही सही
नही दिया
मैं हर हाल में तेरी
तेरी मंदिर की जोत मेरी

ओ मेरे रब्बा !!!

ओ मेरे रब्बा !!!
तुम ही तो हो भगवान्
तुम्ही हो खुदा
तुम्ही गुरुज्ञान

आज मेरे रोम रोम में
आलोकित हो तुम
मेरी रग -रग में
प्रकाशित हो तुम

साक्षात् तुम्ही को देखा हैं
साष्टांग तुम्ही को पूजा हैं
दंडवत तुम्ही को चाहा हैं
सच्चे दिल से माना है

बस अब यही अरदास हैं
क्यों दुःख /सुख का
अजीब सा हिसाब हैं
किसी की झोली
खुशियों से भरी
कोई एक मुस्कान
का भी मोहताज हैं
कर दो उस हिस्से की
ख़ुशी का दान
पूजे तुझे हर एक इंसान !!!!

टिप्पणियाँ

  1. बीटिंग द रिट्रीट ऑन ब्लॉग बुलेटिन आज दिल्ली के विजय चौक पर हुये 'बीटिंग द रिट्रीट' के साथ ही इस साल के गणतंत्र दिवस समारोह का समापन हो गया ! आज की 'बीटिंग द रिट्रीट' ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. प्रार्थना अच्छी लगी।

    मेरी नई पोस्ट "एक जानकारी गौरेया के बारे में" को भी अवश्य पढ़े। धन्यवाद।
    ब्लॉग पता है :- गौरेया : gaureya.blogspot.com

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  3. Beautiful Presentation.
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    जवाब देंहटाएं
  4. तुम्ही हो बंधु सखा तुम्हीं....सुंदर प्रार्थन...

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  5. बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.

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