आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की


आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की
 कुछ मुठ्ठी ख्याल तुम ले आना
 कुछ मेरे आँचल मैं हैं
 आओ मिलकर बुने एक नज़्म
 तेरे मेरे ज़ज्बातो की
 आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की

याद हैं तुमको वोह पहली बरसात
 भीगे तन-मन   भीगी कायनात
 कुछ तुमने कसकर थामा
 कुछ ढीली पकड  मेरे हाथो की

आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की

याद हैं तुमको वोह ठिठुरती  सर्दी
 धुप का टुकडा  और हम दोनों
 मूंगफली के छिलके और   अनकही बाते
 बन गयी थी एक किताब हमारे ठाहको की

आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की

 याद हैं तुमको वोह तपती दोपहरी
 छज्जे के नीचे   हम दोनों और पानी का गिलास
 गर्मागर्म तब बहस हुए थी  टूट रहे थे रिश्ते खास
 पर डोर कच्ची नही थी तेरे मेरे रिश्ते के धागों की

आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की
.
 चाहे कितने मौसम बदले
   कितने ही बादल  बरसे
 गर्मी जितना हमें जितना सता ले
 सर्दी हमको कितना ठिठुरा ले
 लिखते राआहेंगे ,लिखते रहे हैं
 नज़्म आपने ज़ज्बातो की

 आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की

टिप्पणियाँ

  1. Very beautifully written .. loved each and every word .. Keep sharing :)

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  2. नज़्म बुन ली तो इतला तो करना था
    खुबसुरत अभिव्यक्ति

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