आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की
कुछ मुठ्ठी ख्याल तुम ले आना
कुछ मेरे आँचल मैं हैं
आओ मिलकर बुने एक नज़्म
तेरे मेरे ज़ज्बातो की
आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की
याद हैं तुमको वोह पहली बरसात
भीगे तन-मन भीगी कायनात
कुछ तुमने कसकर थामा
कुछ ढीली पकड मेरे हाथो की
आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की
याद हैं तुमको वोह ठिठुरती सर्दी
धुप का टुकडा और हम दोनों
मूंगफली के छिलके और अनकही बाते
बन गयी थी एक किताब हमारे ठाहको की
आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की
याद हैं तुमको वोह तपती दोपहरी
छज्जे के नीचे हम दोनों और पानी का गिलास
गर्मागर्म तब बहस हुए थी टूट रहे थे रिश्ते खास
पर डोर कच्ची नही थी तेरे मेरे रिश्ते के धागों की
आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की
.
चाहे कितने मौसम बदले
कितने ही बादल बरसे
गर्मी जितना हमें जितना सता ले
सर्दी हमको कितना ठिठुरा ले
लिखते राआहेंगे ,लिखते रहे हैं
नज़्म आपने ज़ज्बातो की
आओं एक नज़्म बुने तेरे मेरे जज्बातों की
ban to gaee khubsurat si najm... :)
जवाब देंहटाएंshukriyaaa
हटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (28-04-2013) के चर्चा मंच 1228 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
जवाब देंहटाएंbahut bahut dhanywad
हटाएंVery beautifully written .. loved each and every word .. Keep sharing :)
जवाब देंहटाएंThank u Rita ji
हटाएंनज़्म बुन ली तो इतला तो करना था
जवाब देंहटाएंखुबसुरत अभिव्यक्ति
thnk u ji bataya tha aapko
हटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंshukriyya aapka
हटाएंसुंदर!
जवाब देंहटाएंshukriya ji
हटाएं