बचपन अनहद नाद सा बजता रहता हैं सांसो में
जिन्दगी की आरोह अवरोह में
झंकृत संगीत सी
पंचम सुर से सप्तम सुर तक
ख्याल , टप्पे , ठुमरी सी
अलंकार की बेतरतीब लय में
फिर भी यादो में सज्जित
मीठी मीठे कलरव सी
होती रहती हैं गुंजित
बचपन की
वोह भूली यादे
वो कच्ची लड़ाइया
वोह पक्की कुट्टिया
फिर अप्पा/ अब्बा का खेल
पो शम्पा भाई पो शम्पा
ऊँच या नीच में
लगड़ी टांग में
या छुप्पन छुपायी
बारात घर की दौड़ या
चन्नी की दूकान
तितु की शिकायते
गानों का शोर
बचपन अनहद नाद सा
बजता रहता हैं सांसो में
अपने भाई -बहनों की यादो संग
चाहे बसे हो दूर देश में ...................................... नीलिमा
missing my brothers sisters .:(
बचपन भुलाये नहीं भूलती !
जवाब देंहटाएंडैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post हे ! भारत के मातायों
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (17-05-2013) के राजनितिक वंशवाद की फलती फूलती वंशबेल : चर्चा मंच-...1247 में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बचपन ... का हर क्षण अंतस पे सजीव ही रहता है ....
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar ..waah !
जवाब देंहटाएंthank u Parul, sada ji , shastri ji .kaliprasad ji
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