न करो ज़ख्म की नुमाइश तुम हर नज़र में यहाँ पे धोका है ग़ज़ल
1.
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साथ अब तो मेरा वहाँ तक है
प्यार का सिलसिला जहाँ तक है
खामशी पूछती है अब तुम से
क्या मोहब्बत फ़क़त बयाँ तक है
खून जो बह रहा है आँखों से
वो वफाओं के हर निशाँ तक है
सुनते थे किस्सा जो रिसालों में
आज वो मेरी दास्ताँ तक है
मुश्किलें रोज़ बढती जाती हैं
ज़िन्दगी सिर्फ इम्तिहाँ तक है
दिल तो बाज़ार में नहीं बिकते
क्यों नज़र उनकी हर दुकाँ तक है
"नीलिमा" ये ग़ज़ल का कहना भी
हाल-ए-दिल है जो बस बयाँ तक है
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@2
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साथ अब तो मेरा वहाँ तक है
प्यार का सिलसिला जहाँ तक है
खामशी पूछती है अब तुम से
क्या मोहब्बत फ़क़त बयाँ तक है
खून जो बह रहा है आँखों से
वो वफाओं के हर निशाँ तक है
सुनते थे किस्सा जो रिसालों में
आज वो मेरी दास्ताँ तक है
मुश्किलें रोज़ बढती जाती हैं
ज़िन्दगी सिर्फ इम्तिहाँ तक है
दिल तो बाज़ार में नहीं बिकते
क्यों नज़र उनकी हर दुकाँ तक है
"नीलिमा" ये ग़ज़ल का कहना भी
हाल-ए-दिल है जो बस बयाँ तक है
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अक्स ऐसा नज़र में सिमटा है
बन्द आँखों से उसको देखा है
बन्द आँखों से उसको देखा है
बज उठी साँसें उसकी पायल सी
मन ही मन जब उसको सोचा है
मन ही मन जब उसको सोचा है
उसकी आँखों में इक शरारत है
कितनी मुश्किल से खुद को रोका है
कितनी मुश्किल से खुद को रोका है
तुम करो न इलाज अब इसका
ज़ख्म दिल का बहुत ही गहरा है
ज़ख्म दिल का बहुत ही गहरा है
हर्फ़ दर हर्फ़ है मोहब्बत में
फिर लगता है कुछ अधूरा है
फिर लगता है कुछ अधूरा है
न करो ज़ख्म की नुमाइश तुम
हर नज़र में यहाँ पे धोका है
हर नज़र में यहाँ पे धोका है
शायरी में मोहब्बतें लिक्खो
"नीलिमा" ये ग़ज़ल का हिस्सा है
"नीलिमा" ये ग़ज़ल का हिस्सा है
बेहतरीन !!!
जवाब देंहटाएंthnk u mitr
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शनिवार (13-07-2013) को समय की कमी ने मार डाला में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी प्रेमपूर्ण टिप्पणी से मैं अभिभूत हूँ। आपका सादर धन्यवाद
हटाएं"नीलिमा" ये ग़ज़ल का कहना भी
जवाब देंहटाएंहाल-ए-दिल है जो बस बयाँ तक है
शायरी में मोहब्बतें लिक्खो
"नीलिमा" ये ग़ज़ल का हिस्सा है
बहुत सुंदर और
बहुत सुंदर ...........
आपकी प्रेमपूर्ण टिप्पणी से मैं अभिभूत हूँ। आपका सादर धन्यवाद
हटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंदोनों ही बहुत सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंआपकी प्रेमपूर्ण टिप्पणी से मैं अभिभूत हूँ। आपका सादर धन्यवाद
हटाएंबहुत उम्दा गजल,
जवाब देंहटाएंखामशी पूछती है अब तुम से
जवाब देंहटाएंक्या मोहब्बत फ़क़त बयाँ तक है
...वाह! बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल....
आपकी प्रेमपूर्ण टिप्पणी से मैं अभिभूत हूँ। आपका सादर धन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर लिखा नीलिमा ....बधाई
जवाब देंहटाएंmohbbat ka bayan umda hain
जवाब देंहटाएंआपकी प्रेमपूर्ण टिप्पणी से मैं अभिभूत हूँ। आपका सादर धन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी प्रेमपूर्ण टिप्पणी से मैं अभिभूत हूँ। आपका सादर धन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी प्रेमपूर्ण टिप्पणी से मैं अभिभूत हूँ। आपका सादर धन्यवाद
हटाएं... बेहद प्रभावशाली
जवाब देंहटाएंआपकी प्रेमपूर्ण टिप्पणी से मैं अभिभूत हूँ। आपका सादर धन्यवाद
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