हम साथ साथ हैं



पत्थर तेरे सीने में भी हैं 
उनके जख्म मेरी रूह पर भी 
तुम कहानिया बनाना जानते 
और मैं लिखना 
तुम शोरमचाना जानते 
और मैं मौन रहना 
.
.
.
हम साथ साथ हैं 
जिन्दगी के हर मुकाम पर

दोस्त बनकर ......


आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-08-2014) को "गणपति वन्दन" (चर्चा मंच 1721) पर भी होगी।
    --
    श्रीगणेश चतुर्थी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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