शहर
हर
शहर की अप नी खुशबू होती हैं
शहर की अप नी खुशबू होती हैं
कोई शहर मन को उदास कर देता हैं
कोई उदास मन को सुक़ून देता हैँ
हर शहर की अपनी मिटटी होतीं हैँ
कोई मिटटी बंजर जमीन सी सिसकती हैं
कोई मिटटी लहलहाती हैं फूलोँ की खुश्बु से
हर शहर का अपना सँगीत होता हैं
कोई सरगम सा बजता हैं कानो में
कोई गाडियों के हॉर्न सा चीखता हैं
हर शहर का अपनी जिन्दगी होती हैं
कही जिया जाता हैं हर लम्हा
कही दौड़ लगायी जाती लम्हे के लिय
हर शहर हसीन होता हैं एक कशिश लिय
कोई अपना शहर होता हैं हसीन सा
कोई अपनों का शहर होता हैं कशिश लिय हुए
नीलिमा शर्मा निविया
आपका सबका स्वागत हैं .इंसान तभी कुछ सीख पता हैं जब वोह अपनी गलतिया सुधारता हैं
मेरे लिखने मे जहा भी आपको गलती देखाई दे . नि;संकोच आलोचना कीजिये .आपकी सराहना और आलोचना का खुले दिल से स्वागत ....शुभम अस्तु
Kahi jiya jata hai har lamha, kahi daud lagayi jati hai har lamhe ke liya...
जवाब देंहटाएंTouchy1
shukriyaa shivaangi
हटाएंKahi jiya jata hai har lamha, kahi daud lagayi jati hai har lamhe ke liya...
जवाब देंहटाएंTouchy1
bahut bahut sundar .....
जवाब देंहटाएंshukriya upasna
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