तेरे यादों का लिहाफ ओढ़ कर
मे कल सारी रात चलती रही
तुम ऐसे तो न थे
तुम ऐसे कब से हुए..
मैं अपनी उँगलियों में
...सपनो कि सीपिया पहन के
अधूरी चाहत से
यूँ ही बावरी सी
चलती रही रात भर
दोस्ती आंसुओं से भी कि
...तो कुछ मीठी सरगोशियाँ भी
याद आयी तुम्हारी..
तुमने कहा था न एक बार
जो तुम बदली तो कसूर मेरा होगा
आज मैं बदली हूँ या तुम
नहीं जानती मैं...
आज भी शाम है मैं नंगे पाँव
सर्द घास पर..
तुझे सोच रही हूँ
.......ख़ामोशी से..
अपनी हाथ कि उस अंगूठी को हिलाते हुए
कुछ भी हो
हो तो तुम मेरे ही
बदल गए तो क्या हुआ...
मौसम भी तो बदल जाया करते हैं...
फिर भी हम हर मौसम का इंतज़ार करते हैं .
... आओ न.....
मैं इंतज़ार कर रही हूँ..........
बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति...
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shukriya sir
जवाब देंहटाएंउफ़ ..इंतज़ार की पीढा ...मन के दर्द को बताती हुई सी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
Thank you so much Anju
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