मुह  फुलाए देखता रहता था  मेरा कालू गोरु टीवी
जब जब मे खोलती थी कबार    रूम का दरवाज़ा
 धुल से अत्ता हुआ ................ कब्बार से सता हुआ
 मेरा प्यारा प्यारा काला गोरु टीवी................
 कितनी खुशिया दी थी इसने
 हम लोग, महाभारत ,रामायण  ओर एक कहानी
विडिओ गेम जोर कर मैंने सीखी इस पर कार चलानी
वी. सी.आर. क तार लगा कर देखे  रात भर चलचित्र
रंगीन  टीवी क आते  ही न रहा कोई इसका मित्र
बाई ने भी हाथ हिलाया , कबारी ने भी  कोई मोल न पाया
आज देखो इसका मन कैसे खुशी सेपागल कालू गोरु मेरा
जब से मोत्ते रंगीन टीवी ने डाला इसकी बगल मई डेरा
कितने दर्प से उसने  इसको...............
 बैठक से निकल शयनकक्ष मई जगह बने थी
 यही नही साथमें  साथियों की टीम हर कमरे में   बसी थी

.
 आअज उसको साथ मई देख कालू गोरु बोला
 जानता था में एक दिन  हश्र एक दिन तेरा भी यह होगा
जितनी जिन्दगी हम दोनों ने इस घर में
 पाए है
 उतनी उम्र इस नए मेहमान की किस्मतमें  नही आई है
 कुछ बरस भी नही लगेगे जब वोह भी होगा यहाँ पर
बदल रही है यह फास्ट दुनिया नही लम्बी उसकी भी उम्र
 सुनकर उन दोनों की बाते मेरा मन घबराया
क्षण  भगुर जीवन की  उफ़ यह कैसे है माया

लालसा मई नित नए की हम रोजाना चलते जाते है
क्यों नही हम मानव खुस को समझाते है
 पर आखिर तो में  भी  एक अदना सी  नारी
 झटक कर गर्दन अपनी  मैंने ताला  लगाया भारी
 जल्दी से     मैंने  l.सी दी  रेमोते का नक् दबाया
"बारे अच्छे लगते है " का नया episode jo है आया.
:)))))))







टिप्पणियाँ

  1. नीलिमा,
    एक नवीनतम विषय पर लिखने की भरसक कोशिश की हैं... खुद ही स्वीकार किया कि टाइप की गलतियाँ हैं... आगे से अपने आप सही होने लगेगा...
    हौसला रखो, बढ़िया सोचो और लिखकर खुद पढ़ो, सुधार करके ही ब्लॉग पर रखो.... मेहनत होगी मगर मेहनत कभी विफल नहीं जाती... पंकज त्रिवेदी

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  2. Lol :) मज़ा आया पढ़ कर.. मुझे लगता है इस तरह की कवितायेँ आपकी विशेष हैं. बड़े अच्छे लगते हैं :)

    जवाब देंहटाएं

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