निर्निमेष अंखियो से तकती में
बार बार
बारम्बार
दिन रात
हर बार
बेचैन सी
हर करवट बदलती
झाकती हुए अपनी
चेहरे की झुर्रियो से
तेरी एक बूँद को तरसती
अरे ओ आसमा मेरे
में
सहरा बनी हु
प्यास है तेरी
याद करती हु
बंद पलकों में
तेरी अनवरत,
तृप्त करती
प्रेम सुधा सी
बूंदों को
जी लो लूंगी में
मर मर कर
तेरे बिन
पर जानते हो तुम
तुम बिन प्रजनन
नही होगा
सो
बरस जाओ मुझे पर
मिटा दो आग
मेरे सीने में धधकती है जो
बहुत दिखा लिया तुमने रोष
देखो अब आंसू सुख गये है
सब रित गया है भीतर मेरे
.
में माँ हु धरती माँ
कैसे सृष्टि बचेगी तुझबिन
नही पूरण
ओ पूरक मेरे तुझ बिन .
अब तो बरस जा
मेरे मेघ मल्हार ............................................... नीलिमा शर्मा
एक सुन्दर कविता... आपकी सबसे सुन्दर कविताओं में से एक... संवेदनशील और मधुर...
जवाब देंहटाएंshukriya Rahul
जवाब देंहटाएंकैसे सृष्टि बचेगी तुझ बिन
जवाब देंहटाएंनही पूर्ण
ओ पूरक मेरे
तुझ बिन .....
बहुत प्यारी सी रचना... धरती की प्यारी सी पुकार बरस जा मेघा ... भींगा दे मेरा तन-बदन !!
Thank you so much mukesh sinha jee
जवाब देंहटाएंhi
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