लौट आओ
लफ्जों के कोलाहल में
सांसो का सन्नाटा है
समंदर सी गहराई भीतर
भावनाओ का ज्वार-भाटा है
ख़ामोशी पसरी है चारो और
बस डूबते
तारे के धड़कने की आवाज़
मधुर संगीत की
तरह..,
सुगंध लिए ..उसकी . मेरा मन
अजन्मी अतृप्त इच्छाएं भी
कशमकश में अटकी हुई.....
याद के धागे बनाकर
हर एक लम्हा..
बुनती हु उसकी स्वेटर
हवाए भी खटखटा रही है
मेरे मन का सूना ,
अनदेखा वोह कोना ....................
........
सुनो न लौट आओ
.
बहुत होते है 15 दिन!!
suno na
जवाब देंहटाएंlaut aao
bahut hote hain
pandrah din:))
.
bas itne shabd khafi de is rachna ke liye
apne me paripurn thi ye rachna...:)
waise shandaar:)
वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....
मन से पुकारा है.....आते ही होंगे...
:-)
अनु
Thank you so much Anu ............
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