पतिव्रता



  चंचल चुप थी 
 एक अरसे से 

  पति के घर से 
निकाल दी गयी हैं  
 पिछले ही महीने 

न ही दहेज़ मिला था 
 न ही रूप सुंदरी थी 
 न कमाती थी पैसा 

   आज जिद पर अड़ी हैं 
 उसे भी खरीदनी हैं
 लाल चूड़ियाँ 
 परसों उसका पहला 
 करवा चौथ  जो हैं 

.................................नीलिमा शर्मा 

टिप्पणियाँ

  1. उफ़ दर्दनाक, मार्मिक... फोटो भी आपने ऐसा ही लगाया...!!
    कुछ पंक्तियाँ कभी कभी एक दम से दिल को छु जाता है...!!

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  2. सादर नमस्कार,

    आपके ब्लॉग पे पहली बार आना हुआ है आपकी रचना " पतिव्रता" पढ़कर दिल रुवांसा हो गया, बड़ा अजीब लगता है की कैसे एक इन्सान दुसरे इन्सान को स्वार्थ लोभ में इतना कष्ट दे सकता है, कैसे प्रताड़ित करने वाला व्यक्ति ये भूल जाता है की इसके द्वारा किये जा रहे कृत्यों का लेखा जोख ईश्वर स्वंयं रख रहे हैं और उसे हर ज़ख्म का हिसाब देना है ...
    अक्सर ऐसा पाया जाता है की व्यक्ति लालच में कितना अमानवीय व्यव्हार करता है और जब अपनी बारी आता है तो दया की उम्मीद करता है...
    दूसरी तरफ हम पढ़े लिखे सभ्य समाज के लोग भी इस तरह के समस्याओं के खिलाफ आवाज़ नही उठाते हैं हम ये सोचने लगते हैं ये हमारे घर का परेशानी थोड़े ही है काहे किसी के लफड़े में पड़ना .. लेकिन एक क्षण के लिए आप कल्पना करिए और प्रताड़ित व्यक्ति के जगह खुद को और अपने परिवार को रख कर उस दृश्य को सोचने का प्रयास करें ..... हमारे आपके लिए उसकी कल्पना करना ही मृत्यु तुल्य कष्ट दे जायेगा...
    खैर... मैं ज्यादा ही भावुक हो गया .... आशा करता हूँ की आप ने जिस तरह से अपनी पंक्तियों से लाखों महिलाओं की बात सामने रख दी है लोग पढ़ कर अवश्य अपने - अपने स्तर पर जागरूकता लेन का प्रयास करेंगे.... आमीन ..
    मुकेश गिरि गोस्वामी

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  3. shukriya sir ......... mere blog par aane ka ..........comment dene ka ... achcha lagta hain jab koi aapka likha parhe .............likhna sarthak lagta hain .Aabhar aapka

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  4. उफ़ दर्दनाक, मार्मिक... फोटो भी आपने ऐसा ही लगाया...!!
    कुछ पंक्तियाँ कभी कभी एक दम से दिल को छु जाता है...!!

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  5. उफ़ ....कम शब्दों में इतना दर्द ....फिर भी अपने के लिए इतनी तड़प ...पढ़ते हुए ...रोंगटे खड़े हो गए ..एक झुरझुरी का अहसास गुज़रा है अभी अभी ..........

    नीलिमा बस ऐसी ही लिखती रहो ...गर्व होता है की तुम्हारा साथ हैं ,मेरे साथ :)))

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  6. Vibha jee apne hi apne hokar dard dete hain naree ko............shukriya hamesha mere sath blog jagat par rahe ka

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  7. अंजू ....... दर्द को बहुत सारे लफ्जों की जरुरत नही होती ...... शुक्रिया .........और मुझे भी गर्व हैं के मैं आपके साथ हु

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  8. एक कटु सच ..यह भी अजीब बिडम्बना है घर समाज की ..
    ....

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