Kumbh kaise nahaoge?


गंगा भी कितनी पावन हैं
कुम्भ का मेला मनभावन है



एक तरफ बेटे का कटा सर
दूसरी तरफ बेटी की लुट्टी आबरू

इक तरफ बाहरी द्दुश्मन पुरजोर
दूसरी तरफ कानून हमारा कमजोर


घर का दुकानदार भूखा मरे
वालमार्ट का तो पेट भरे


माँ /बाप के घर तो अँधेरा हैं
मंदिर में रात को भी सवेरा है


नंगे बदन पर रजाई नही
गरीब की कही सुनवाई नही


मन का मैल तुम्हारे अन्दर
तन तो बना लिया तुमने सुन्दर



अपनों का जरा भी सोग नही हैं
क्या नजरो में तुम्हारी भोग नही हैं ?



क्या तुम समाज का शुभ कर पाओगे
पापी इन्सान कुम्भ क्या तुम नहाओगे ...Neelima Sharma

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