पगडंडियाँ -2



bhag -2

कवियत्री , कहानीकार ज्योतिषी . किस तरह से परिचय कराये जाये उपासना सिआग जी का   उनका पहला साँझा काव्य संग्रह और जोरदार तरीके से अपनी बात कहने में सक्षम  नवीनतम विषयों का चुनाव करती हैं    "अस्थिकलश" " मन की उड़ान"" प्रेम की सरगम"' मन की मन ही मन में "हो या फिर ' असंयम '

 एक बानगी देखिये इनकी कलम की  

गांधारी का भी तो आचरण 
असंयमित ही था ,
अगर 
अपने नेत्रों पर पट्टी 
ना बांधी होती 
तो क्या ,
उसकी संतान ऐसी 
कुसंस्कारी और दुष्कर्मी 
होती ,
ना ही महाभारत की 
सम्भावना होती .........
अगर संयमित आचरण 
दुर्योधन ने भी किया होता 
तो क्या ,
वह रिश्तों को तार - तार 
करता...!
द्रोपदी को भी तो 
थोड़ा संयम अपनी वाणी 
पर रखना ही था......
आखिर असंयमित वाणी 
ही तो कारण होती है 
महाभारत का...

मिनाक्षी पन्त जी  चाहती हैं के उनके लिखे से कुछ न कुछ सन्देश अवश्य आये  और सफल भी हुई हैं हैं  बहुत उम्दा लिखती हैं 
मिनाक्षी जी अपने  शाब्दो में 
"एक अधूरी  आस'; रिश्ते "पेड़ "" इन्साफ हुआ जरुर था' बहुत उम्दा हैं "सिर्फ एक आह " मन में एक कसक छोड़ जाती हैं 
'
"वोह भाग गयी , वोह भाग गयी 
 हम न कहते थे  वोह भाग जाएगी 
.
.
हाँ सच कहते थे लोग कि  वोह गाँव  से भाग गयी 
 पर सच इतना नही हैं 
 सच तो यह हैं की वोह सिर्फ गाँव  से ही नही 
 बल्कि इस जहाँ से भाग गयी थी 
 अपने नाम का निवाला कम कर 
 पिटा की चिंता को कम करने क लिय के लिए "
बानगी 
  ' आह और वाह ही हैं जिन्दगी ' से 

हर नाकामयाबियो के बाद , बंद मुठ्ठी खोलती 
 एक शक्ति एक विश्वास  का , संचार घोलती "


प्रियंका राठौर  कम उम्र मैं उचे पायदान तक पहुचने की क्षमता रखती हैं  उन की कविताए बहुत गहरे  भाव लिए हैं "अनिश्चिताता "सस्ती  मौत" एक चादर हैं सूनेपन की "गहरे तक सोचने पर मजबूर करती हैं वो लम्हा ' एल अलग ही रंग में गुजर जाता है ....जीवन  एक  बानगी  देखिये ....


मुठ्ठी की फिसलती रेत  सा 
जीवन छूटा जाता है 
 बंधने की कोशिश में  
 बंधन ही बन जाता हैं 
 दीपक की लोउ सा जलता बुझता 
 रंगों बीच  स्याही सा 
जीवन बीता जाता हैं 
 मान की सूनी कोउख सा 
विधवा के हाथ सिंदूर सा 
 जीवन रीता जाता हैं 
बंधने की कोशिश में  
 बंधन ही बन जाता हैं 


 अंकित खरे  मन की बातो को कागज पर उतारने का शौंक रखने वाले प्रतिभावान कवि  हैं ' अंतिम सच ''भूली बिसरी यादो   की    किताब '  ' वक़्त हूँ बदल जाऊँगा '
' अब नही लिखूंगा कोई कविता 'कुहासे की सर्दी और माँ   ' उनके सवेदनशील  होने का परिचय देती हैं  '
' माँ मुझे नजर लग जायेगी , अब क्यों नही समझती तुम ;' पढ़ कर   हर बेटे का मन रो देता हैं 
 'मुंबई बम ब्लास्ट 'पर उनकी कलम ने कहा 

' संवेदनाओं से परे एक बार फिर वोह जख्म दे गये 
 कल तक हस्ते थे जो साथ  आज आँखों में  आंसू दे गये 
 बेबस खड़ी थी जिन्दगी फ़रियाद कर रही थी 
मौत के फ़रिश्ते आये और साथ  अपने ले गये '


"रूमी बग्गा " जैसा नाम वैसा ही ही लिखना उनका 

 ' मेरे हिस्से की नमी '  कोमा से फुल स्टॉप तक का सफ़र '  कोशिश ' ' मुन्तजिर '  बेहतरीन हैं 

'तुम्हारे लफ्ज़ जब  भी मेरे जहन  में चहलकदमी करते हैं 
 तो जुबान खामोश रह कर सलाम करती हैं '


'हर साँस मुझ ही से जीते हो 
और मेरी उम्र की बाते करते हो 
सब्र की आजमाइश न करो 
 इतना परखोगे तो हम टूट जायेंगे '


  
 "नीलम पुरी  " भावो को लफ्जों में पिरोना बखूबी जानती हैं  ' 

चाहे ' माँ'' हो या 'हस्ताक्षर'

कुछ लाइन्स उनकी देखिये कितनी गहरी हैं .............

करते हो बेशुमार प्यार मुझसे / लेकिन मुझे बेवज़ह सताना, रुलाना ,/ तुम्हे अच्छा  लगता हैं ......... 

घर तो लगता अपना ही हैं / पर दीवारों से डर  लगता हैं .......

चूम लेते हो मेरे शानो को तुम जब / और शर्म से मेरा मर जाना / तुम्हे अच्छा लगता हैं 

आती हैं अदाए उसे सौ सौ मुझे सताने की /और फिर देखो कैसे रूठ कर मुझे मनाती हैं 

तुम ठहरे रिश्तो के शहंशाह / मैं तो अहसासों का पुतला हूँ 




'रजनी नैय्यर मल्होत्रा जी'  कहानीकार भी हैं तो काव्य की अनेक विधाओ की ज्ञाता भी ...
 मंच पर सस्वर  काव्य पाठ में निपुण  अपने लफ्जों से बयां करती हैं ....


 पुन्य आत्मा बनकर अब, शैतान चीखता हैं 
 आती नही हैं सूरत ,पहचान में हर किसी की 
आपकी जिन्दगी की सुरीली साज़ हूँ /क्या हुआ जो मैं लड़की बेआवाज़ हूँ 


बहरही हैं हवा , वादी में आतंकी 
 सरहद क्या पूरा मुल्क ` खतरे के निशाँ पर हैं 


 यु तो कुछ देर की मुलाकात थी उनसे मेरी 
 दिल में एक खास जगह बना गया कोई .


 उनके शेर अक्सर विभिन्न जगह देखे जाते हैं हर आम /खास की पसंद बनकर 





कमल शर्मा जी  हरयाणवी  फिल्मो के अदाकार , गीतकार ,संवाद लेखक  संगीतकार ,गायक  अनेक प्रतिभाओ के धनी हैं 

हिंदी उर्दू लफ्जों का प्रयोग इनकी कविताओ में बहुतायत से हुआ हैं 
 कुछ लाइन्स देखिये इनकी लिखी ..........

यह मेरी सादगी हैं या मेरी कोई बेवकूफी हैं 
लूटा था जिसने मेरा घर , उसको ही दरेबां कर दिया 
~~ 
क्या  पूछते हो   तुम क्या चीज है ग़ज़ल 
 गमख्वार दिमागों की अजीज हैं ग़ज़ल 
~~~~ 
किस किस को जहाँ में खुश रखूं 
जो करता हैं हिकारत करने दो 
~~ 


शेफाली गुप्ता किशोरावस्था   से ही लफ्जों से खेलने लगी थी कविताओ / कहानियो का वाचन करना इनका शौंक हैं 

 इनकी लिखी कविता 'तुम हो', 'जानते हो मुझे ?',  ' तुम्हारे लिय "  सहजता से भावो को व्यक्त करने में सफल हुयी  हैं 
 " पाना- खोना ' से एक बानगी देखिये 
 '
 " जो पाया नही कभी 
 आज खो दिया सा लगता हैं 
~ जेहन से 
अब मन खाली सा लगता हैं "'

 'तेरे बिना " मैं शेफाली कहती हैं ....
 तेरे बिना कविता की शक्ल  / नही बनती / शब्द में आत्मा कहाँ से लाऊ ?

एक और मेरी पसंदीदा लाइन्स 

   सांसो में उठते तूफ़ान से लेकर / धड़कन में बसा उन्माद हो तुम 
 कल तक नीले आसमान का विस्तार थे तो / आज  इन्ही के बादलो का  स्याह रूप भी तो तुम हो 




अंजू अनु चौधरी  किसी परिचय की मोहताज नही  संपादन/ लेखन की अनेक विधाओ से जुडी  अंजू की काव्यसंग्रह को पुरुस्कृत भी किया गया हैं  कुशल संपादन में कई किताबे ला चुकी अंजू जी की कलम जीवन को खुले दृष्टिकोण से देखती हैं  इस पुस्तक के  तीन संपादको में से एक  अंजू  दिल की आवाज़ को लफ्जों में पिरोती हैं  । उनकी लम्बी कविता "टूटी -फूटी जिन्दगी "" परी  ( ममतामयी माँ")" अहसासों के बहुत करीब हैं  'मैं दीप हूँ "    एक आत्मकथा सी हैं दिए की ... 

 "उम्मीद से" की कुछ पंक्तियाँ देखिये 

 एक उम्मीद जब टूटती हैं तो टूट जाता हैं यह मासूम सा दिल 
जो सजाने लगा था, कुछ हसीं सपने इस जिन्दगी के 
 और सपने जब बदलते हैं हकीक़त में  तो नाउम्मीदी कादामन  ही  हाथ लगता हैं 
 यह जानते हुए भी कि

,,......
 मैं खुद को मिटा कर भी उन्हें पूरा नही  करसकती 
 और अगर पूरा करती हूँ उन सपनो और उम्मिद्दो को 
 तो खुद से ही टूट कर  बिखर जाती हूँ 
 अपने ही भीतर 
 खुद को खुद से अंत तक 
 जोड़ने के लिय 




रंजू (र्रंजना ) भाटिया कविता लेखन के साथ साथ बाल /नारी साहित्य लेखन से भी जुडी हैं  एक समीक्षक के रूप में उनका नजरिया बहुत ही पैना हैं   अपनी पुस्तकों के लिय 
 अनेक पुरूस्कार विजेता रंजू  जी का लिखा हर दिल को अपने करीब  का लगता हैं . उनके हर लफ्ज़ से एक जुडाव सा महसूस होता हैं ..  " बहुत दिन हुए " में रंजू जी कहती हैं ."  एक ख़त लिखना हैं मुझे / उन बीते हुए लम्हों / वापिस लाने के लिय /बहुत दिन हुए यूं दिल ने / पुराने लम्हों को जी के नही देखा ।  " आधा अधुरा '  हो या " परिवर्तन" सहजता से भावो का संप्रेक्षण करती हैं 
एक बानगी देखिये " रिश्तो की स्व मौत " से ........ 
  जनम लेने से पहले / सांसो के तन से जुड़ने से पहले /  ना जाने कितने रिश्ते / खुद -ही  -खुद जुड़ जाते हैं 
 बांध जाते हैं कितने बंधन / इन अनजान रिश्तो से / 
~~~ 
 बोझ बने यह रिश्ते / आखिर कब तक यूं ही / णीभःआआटेएए जायेंगे  सोचती हूँ कई बार /
 आखिर क्यों नही / इन बोझिल रिस्श्तो को 
 हम अपनी स्व मौत मर जाने देते ......

 एक बानगी और ......
 तुम्हे मैंने जितना जाना / बूँद बूँद ही जाना / तुम वह नही जो दीखते हो .


कितना शाश्वत सच आज का कह दिया न 





 मुकेश कुमार सिन्हा जी  सरल शब्द्दो में रोजमर्रा  के जीवन में भी काव्य तलाश लेते हैं   नारी की मानसिक दशाको दर्शाती इनकी कविता ' ए  भास्कर"  समसामयिक हैं "पोस्टर " में बचपन को याद करते मुकेश कभी नेताओ को  ' वोटो के भिखारी "  की तरह देखते हैं   
 परन्तु झकझोर डालती हैं इनकी कविता " लैंड क्रूजर का पहिया '

दूर पढ़ी थी / सफ़ेद कपडे में ढकी लाश / पर मीडिया की ब्रेकिंग न्यूज़ / मैं नही थी, मन सुख की मैया  या उसका इंटरव्यू 
टी . आर . पी  कहाँ बनती हैं / भूखी बेसहारा माँ  से / इसलिय टी . वी . स्क्रीन पर / चिल्ला रहे थे / न्यूज़ रीडर 
लैंड क्रूज़र  के नीचे / सी पी  के व्यस्त चौराहे पर  / गया मेहनत काश नौजवान 
 और बार बार सिर्फ देख रहा था स्क्रीन पर / चमकता लैंड क्रूज़र  व्  उसका निर्दयी पहिया 

माँ की फ़िक्र को लफ्जों में बखूबी  ढाला हैं इन्होने 
 " मैया में '
 और माँ  को कहते हैं " 
 ' मैं सच्ची में बड़ा हो गया / मेरा मन कहता हैं 
 एक बार  तू मेरे गोद में सर रखकर देख /
 एक बार मेरी बच्ची बनकर देख 
  सच में एक उम्र मैं माँ- बाबा भी बच्चे ही हो जाते हैं .



अंत में नीलिमा शर्मा  यानी  मेरी कविताएं 



 अब मैंने कैसा लिखा यह तो आप सब मित्र ही बता सकते हैं परन्तु लफ्जों से खेलना   मेरी आदत सी बन गयी हैं कभी लफ्ज़ मेरा कहा मान लेते हैं तो कभी नासमझ हो मुझे परेशान भी कर देते हैं

दिल्ली बलात्कार कांड पर निर्भय (दामिनी) की मौत ने भीतर तक झकझोर दल और लिखा मैंने 

 " तुम मेरी कुछ भी तो नही थी फिर भी मैंने  तुम्हारे दर्द को सहा प्रसव पीड़ा सा '


परिवारों में बुजुर्गो की दशा पर मेरा मन पसीज उठता हैं  और  माँ के रोकने पर भी जब बेटी मायके में नही रूक पाती तो मेरी कलम कह उठी    .. " माँ कितनी भी उम्रदराज़ हो जाए / पढ़ लेती हैं बेटी के अनबोले ज़ज्बातो को " कितना मुश्किल होता हैं न माँ के घर से यूं लौट कर आना  / माँ रूकने को कहे और बेटी बनाये झूठा बहाना '

  पग्दंद्द्दियो पर चलते चलते मेरे लफ्ज़   सूरज मुखी और सूरज के प्यार को बताते हुए नाम की महिमा भी बखान कर जाते हैं सरहद पर बैठे  सैनिक की मानसिक  पीड़ा  से भी अनजान नही  रहे मेरे लफ्ज़   ..............


. एक सिपाही हूँ 
मेरा जीवन आज है 
कल हो न हो
या बरसो तक हो 
बस यही सोच
हर रात तुझे आभास समझ कर 
लिपट जाता हूँ ......
जी लेता हूँ पलभर में 
उस हर जुनूनी लम्हे को ...
जो तुने कभी सोचा ही नही 
और मैंने कभी कहा भी नही



 और जब मेरे लफ्ज़ नाराज हो जाते हैं मुझसे तो मेरी हालत ऐसे होती हैं .......
आज में कुछ लिखना चाहती हु 
पर क्या?
यह नही समझ प् रही हु 
ओर किसे?
यह भी नही जानती हूँ .
कोई भी तस्वीर
मेरे सामने नही है
चेहरे आते है ,चले जाते है
कागज पर आरही /तिरछी लकीरों से
कुछ अस्पष्ट से शब्दों से
एक अक्स बनती हूँ
फिर खुद पर
खुद ही से झुंझला जाती हूँ
पता नही
क्या बोझ सा दिल पर हैं
जो कागज पर नही उकरता है
अजीब सी घुटन
बैचैनी
जैसे मेरे भीतर
कुछ जल सा रहा हैं
पर क्या?
इस झल्लाहट को
में बयां नही कर पा रही हु
पर में कुछ लिखना छह रही हु
पता नही क्या लिखना छह रही हु ?



बहुत बहुत धन्यवाद आप सबका मेरी नजर से पगडंडियाँ पुस्तक पढने का ...


 हम सब एक साथ अपनी अपनी पगडंडियाँ पार करते हुए  मंजिल की तरफ बढे ऐसे शुभकामना हैं .. ......
 यह मेरी पहली समीक्षा हैं  सभी साथी बहुत अच्चा लिखते हैं फिर भी अगर उनकी कविताओ की समीक्षा करने मॆ मुझसे कोई त्रुटी हो गयी हो तो क्षमा चाहती हूँ 

 आपना कीमती समय देने के लिय धन्यवाद ......................... 


धन्यवाद रश्मि प्रभा जी का जिन्होंने इतना खूबसूरत सम्पादकीय  लिखा .हम सब रचनाकारों की हौसला अफजाई की 


धन्यवाद शैलेश जी का . जिन्होंने इतने कम समय में पुस्तक का प्रकाशन एवं मुद्रण  किया . हम सब रचनाकारों को एक मंच दिया 

टिप्पणियाँ

  1. पगडंडियों को इस से अच्छी समीक्षा नहीं मिल सकती ...सरल शब्दों की तुम धनी हो ...बहुत खूब

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  2. pehli sameeksha hi itni zbardst.... hats off :) pagdandiyo k her ek rachnakar ke her ek udgaar ko kai baar padha maine... per her roj iksha hoti ki fir padhu... sach mai pagdandiyaa adhbhut hai...

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  3. इस समीक्षा के दोनों भाग पढ़े ....यूँ लगा जैसे सारी पस्तक का सारांश नज़र के सामने है ....बहुत अच्छी समीक्षा ....इसे पढ़कर किसी के भी मन में पूरी पुस्तक पढ़ने की इच्छा हो जायेगी ... :)

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  4. बहुत बहुत शुक्रिया नीलिमा सागर जी हमने कैसा लिखा वो आपने बहुत खूबसूरती से बयाँ किया उसके लिये मैं आपकी तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ पर आपने जिस अंदाज़ से हमारी रचनाओ को प्रस्तुत किया वो कबीले तारीफ है आपका और सभी कवि मित्रों का बहुत - बहुत शुक्रिया ये सफर ऐसे ही आगे बढते रहें इसके लिये बहुत २ शुभकामनायें |

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  5. वाह जी वाह क्या बात नीलिमा जी ......अपनी तारीफ सुन कर बहुत अभिभूत हुई ......और भी बहुत अच्छी सटीक समीक्षा ....बहुत शुक्रिया जी

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  6. अच्छा लगता है, जब अपने से जुडी कोई भी बात हो..
    अच्छा लगता है, जब अपने से जुड़े लोग कहे की आप में भी है दम...
    अच्छा लगता है जब कोई आपसे जुडी पुस्तक पर भरपूर समय दे और फिर समीक्षात्मक सोच प्रस्तुत करे...
    अच्छा लगता है ........
    आप अच्छे हो और सच्चे हो नीलिमा जी...
    धन्यवाद् !!

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  7. अच्छा लगता है, जब अपने से जुडी कोई भी बात हो..
    अच्छा लगता है, जब अपने से जुड़े लोग कहे की आप में भी है दम...
    अच्छा लगता है जब कोई आपसे जुडी पुस्तक पर भरपूर समय दे और फिर समीक्षात्मक सोच प्रस्तुत करे...
    अच्छा लगता है ........
    आप अच्छे हो और सच्चे हो नीलिमा जी...
    धन्यवाद् !!

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  8. अच्छा लगता है जब अपने से जुडी कोई भी बात हो
    अच्छा लगता है जब अपने से जुड़े लोग कहें, आप में है दम..
    अच्छा लगता है जब आपसे जुडी पुस्तक पर कोई भरपूर समय दे, और समीक्षात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करें...
    अच्छा लगता है ...
    आप अच्छे हो, और सच्चे हो नीलिमा जी...
    धन्यवाद्.. शुभकामनायें...

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  9. नीलिमा बहुत अच्छा लिखा है आपने पग्दंदियाँ वाकई रास्ता नजर आने लगी है आपके लिखे से :) उत्सुकता जाग जाती है इस संग्रह को आपके लिखे पढने से ..बधाई ..और बड़ी तो होनी ही थी यह ..सब को साथ ले कर जो चलना था इस रस्ते पर .:) कल शाम को आपने यह पोस्ट की और सुबह अपनी छोटी बहन से बात हुई उसने इस संग्रह में तुम्हारी लिखी कविता मायका की बहुत तारीफ की है जो मैं तुम तक पहुंचा रही हूँ ...:)

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    1. shukriya Ranju ji ...ek sameekshak agar meri sameeksha ko pasand kare to mera likhna safal raha . bas isi tarah margdarshan karte rahiyega ..... apni sister ko bhi mera dhanywaadd kahiyega

      हटाएं
  10. kya bat hai neelu ..maja aa gaya , aise laga jaise samiksha me hi puri book padh li :) samiksha ke order lena shuru kar do.. :)

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  11. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  12. पगडण्डियां एक अनुभव है इस समीक्षा की नज़र से। शामिल सभी रचनाकारों को बधाई और अनंत शुभकामनाएं .

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