झल्ली सी
झल्ली सी तो पहले ही थी
अब तो दीवानी सी फिरती होगी
क्या हुआ , कैसे हुआ
सोचते सोचते अकेले में
चुपचाप सिसकती होगी !!!
मेरा भी मन करता हैं
बाहों में उसको भर लूँ
उसकी उमंगें भी मेरी
आगोश को तरसती होगी !!!
समाई है भीतर मेरे
उसकी पावन सी महक
मेरी खुशबू भी ,उसकी
सांसो में बस्ती होगी !!!
उसकी खामोश नाराजगी को
पहचान सकता हूँ आँखों से
वो उदासी मेरे मनाने को
कितनी शिद्दत से तरसती होगी
झल्ली सी तो पहले सी थी
दीवानी सी फिरती होगी
हँसती होगी कभी
रोती होगी कभी
याद मुझे भी
वोह करती होगी !!!
अब तो दीवानी सी फिरती होगी
क्या हुआ , कैसे हुआ
सोचते सोचते अकेले में
चुपचाप सिसकती होगी !!!
मेरा भी मन करता हैं
बाहों में उसको भर लूँ
उसकी उमंगें भी मेरी
आगोश को तरसती होगी !!!
समाई है भीतर मेरे
उसकी पावन सी महक
मेरी खुशबू भी ,उसकी
सांसो में बस्ती होगी !!!
उसकी खामोश नाराजगी को
पहचान सकता हूँ आँखों से
वो उदासी मेरे मनाने को
कितनी शिद्दत से तरसती होगी
झल्ली सी तो पहले सी थी
दीवानी सी फिरती होगी
हँसती होगी कभी
रोती होगी कभी
याद मुझे भी
वोह करती होगी !!!
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना...
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