शुभ महिला दिवस


जानती हूँ तुम न होते तो मैं भी न होती
पर मैं न होती तो तुम भी न होते क्यों भूल जाते हो
हम पूरक हैं एक दुसरे के .,कोई प्रतिद्वंदी नही
क्यों बेफिजूल अपने महान होने का दंभ भर जाते हो


आज भी जब होते हो जब कष्टों में
क्यों मूक होकर माँ को आँखों में भर लाते हो
आज भी होते हो जब खुशियों में
माँ की फोटो आगे आखो से सर झुकाते हो


सुकून महसूस करते हो प्रिय को सीने से लगा कर
फिर उसी को झूठे अहम् की बलि चड़ा जाते हो
जानते हो नारी जरुरत हैं जिन्दगी की
फिर क्यों खामख्वाह कागजी जहाज उड़ाते हो


सब मर्द नही देते दर्द जानती हैं नारिया भी
जब पापा बनकर तुम उनकी जिन्दगी मैं आते हो
क्यों हवस के पुजारी बनकर लूट'ते हो उनकी अस्मत
क्यों उनकी नफरतो का, आक्रोश का सामान बन जाते हो

हर नारी नही माँ जैसे प्यारी हर कोई मानता हैं
कुछ नारियो को भी पुरुषो को तड़पाने में मजा आता हैं
कुछ होती हैं इस पृथ्वी पर बोझ स्वरुप अत्याचारी
अपनी कुठाओ पर विजय पाकर क्यों नही मानव बन जाते हो


नारी सृजनकार हैं नारी पालन हार हैं सृष्टि की
शारीरिक जरूरतों के लिय प्रयोग कर तुम उसे
"बेटे ही हो " का बीज बो जाते हो
फिर कन्या भ्रूण ह्त्या करवाते हो


तुम पूजनीय हो तुम आदरणीय हो
तुम प्रियतम हो , तुम प्रियवर हो
364 दिन क्यों तुम्हारे इस दुनिया में
हैप्पी एक दिन ही हमें क्यों कह जाते हो

हाथ थामो , दामन थामो या थामो हमें कंधे से
प्यार का हाथ मिले तो नारीबंधी रह जाए खूंटे से भी
तिरस्कार नही सत्कार -.सम्मान उसे अब देना होगा
सिर्फ एक दिन को शुभ महिला दिवस क्यों कह कह जाते हो


सब नारियो को अपने आत्मसम्मान के साथ जीने का हक मिले .. इस शुभकामना के साथ ...... नीलिमा शर्मा

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर .. सार्थक और सटीक

    आप को भी ढेरों शुभकामनाएँ नीलिमा जी

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  2. अच्छी रचना। शुभकामनाएं।
    भारत की
    नारी
    एकदिनी
    ‘विश्व महिला दिवस’
    नहीं
    हर दिन का उजियारा,
    हर रात का श्वेत अँधियारा है!
    रिश्तों में जिन्दगी है नारी!

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  3. वाह .. सशक्त प्रभावी अभिव्यक्ति .. !
    कुछ उलझन ..कुछ सवाल जो बेहद खूबसूरती और शालीनता से आपने कविता में पिरोये ..
    जब अनुगामिनी तुम्हारी ... हर कदम पर साथ तो फिर तुम्हारे कुछ मिथ्या दंभ क्यों ...
    उम्दा रचना के लिए आपको बहुत बधाई !!

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  4. बहुत ही प्रभावी,सुन्दर अभिव्यक्ति.

    जवाब देंहटाएं

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