बाल मजदूर
हम ढोते हैं ईंटे तुम्हारे मकानों के लिए
रोटी के टुकडो और चंद कतरों तन के लिए
रोटी के टुकडो और चंद कतरों तन के लिए
हमारे आंसू भी बिखरे हैं इसकी नींव में
पैसा बहाते हो तुम हमारे पसीने के लिए
पैसा बहाते हो तुम हमारे पसीने के लिए
चाहे जितना शोर मचहा लो संसद से सडको तलक
लोग हमको रख ही लेंगे नौकर पैसा बचाने के लिय
लोग हमको रख ही लेंगे नौकर पैसा बचाने के लिय
मेरी बहना भी रोती हैं जब बोझा सर पर ढोती हैं
गुद्दिया भी उसकी तड़पती हैं खेल खिलाने के लिए
गुद्दिया भी उसकी तड़पती हैं खेल खिलाने के लिए
हम भी हक चाहिए रोटी/ कपडा और पढाई का
क्यों पाया जन्म हमने
बाल मजदूर बन जाने के लिए....Neelima sharmaक्यों पाया जन्म हमने
बहुत ही मार्मिक रचना आदरणीया चित्र को देख ही मन भर आया उस पर आपकी रचना एकदम सही एवं सटीक है. हार्दिक बधाई
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