खंगाल रही हूँ
खंगाल रही हूँ  पुराने पन्ने 
 अपनी लिखी 
 डायरी के 
 पुराने पन्ने
जिस पर 
कई बार कडवाहट 
 कई बार झुंझलाहट 
 उड़ेली थी मैंने 
 अक्षरक्ष 
 जब तब 
 कुण्ठित /
अवसादित 
 हो कर
रंगा  था मैंने 
अकेलेपन में 
 फाड़ डालना हैं 
अब उन पन्नो को  
  बिना  दुबारा -तिबारा पढ़े 
भूल जाना हैं  
उन उदास पलो को 
 सुनो न 
 नयी डायरी लेनी हैं 
 जिन्दगी को नए सिरे से लिखना हैं 
मुझे प्रेम की स्याही से  ................नीलिमा शर्मा 


जिन्दगी को नये सिरे से लिखना ... अच्छा है ये ख्याल भी
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ
सादर
जवाब देंहटाएंजीवन को नये सिरे से लिखा जाना चाहिये
सृजन की नयी बात कही है
सार्थक,सुंदर रचना
बधाई
आग्रह इसे भी पढ़े "बूंद"
umda... :)
जवाब देंहटाएंthank u frds
जवाब देंहटाएं