lafzo ki udhed bun
अपने भावो को लफ्जों में पिरोना
फिर उनको बार बार पढना
कभी तेरी नजर से
कभी अपनी नजर से
और फिर खो जाना
लफ्जों की भीड़ में
अक्सर होता हैं न
मेरे साथ भी
तुम्हारे साथ भी
फिर भी लफ्जों से यारी
कभी कम नही होती
हाँ सुर जरुर बदल जाते हैं
कभी पंचम सुर तो
कभी सप्तम सुर
कभी आरोह अवरोह से
उतरते चदते सुर
लफ्ज़ कभी भावो से भरे
तो कभी भावहीन से
कभी पुलकित करते हुए से
तो कभी एकदम ग़मगीन से
कभी कभी ख्याल आता हैं
लफ्ज़ न होते तो
भाषा कैसे होती
न हमारे भाव उमड़ते
न हम संवेदनशील होते
भाषा मूक भी होती हैं
भाव होते हैं उस में भी लफ्जों से
और भाव भंगिमाओ से
भी बयां होते हैं
कभी कभी सोचती हूँ अकेले में
कैसे पहले मानव ने
बिना भाषा /भावो के
अपनी प्रेयसी को
प्रेम निवेदन किया होगा
कैसे माँ ने
बिना भावो के
बच्चे को जन्म दिया होगा
कैसे जुदा हुयी होगी
बेटी माँ और बाबुल से
बहन को विदा कर
भाई कैसे रोया होगा
लफ्जों से ही हैं
सारे भाव / भंगिमाओ का बयां
बस कभी उनको
आत्मसात कर जाते हैं
कभी अनजबी बन देखते रहते हैं
अपने ही लिखे /कहे लफ्जों को...
फिर उनको बार बार पढना
कभी तेरी नजर से
कभी अपनी नजर से
और फिर खो जाना
लफ्जों की भीड़ में
अक्सर होता हैं न
मेरे साथ भी
तुम्हारे साथ भी
फिर भी लफ्जों से यारी
कभी कम नही होती
हाँ सुर जरुर बदल जाते हैं
कभी पंचम सुर तो
कभी सप्तम सुर
कभी आरोह अवरोह से
उतरते चदते सुर
लफ्ज़ कभी भावो से भरे
तो कभी भावहीन से
कभी पुलकित करते हुए से
तो कभी एकदम ग़मगीन से
कभी कभी ख्याल आता हैं
लफ्ज़ न होते तो
भाषा कैसे होती
न हमारे भाव उमड़ते
न हम संवेदनशील होते
भाषा मूक भी होती हैं
भाव होते हैं उस में भी लफ्जों से
और भाव भंगिमाओ से
भी बयां होते हैं
कभी कभी सोचती हूँ अकेले में
कैसे पहले मानव ने
बिना भाषा /भावो के
अपनी प्रेयसी को
प्रेम निवेदन किया होगा
कैसे माँ ने
बिना भावो के
बच्चे को जन्म दिया होगा
कैसे जुदा हुयी होगी
बेटी माँ और बाबुल से
बहन को विदा कर
भाई कैसे रोया होगा
लफ्जों से ही हैं
सारे भाव / भंगिमाओ का बयां
बस कभी उनको
आत्मसात कर जाते हैं
कभी अनजबी बन देखते रहते हैं
अपने ही लिखे /कहे लफ्जों को...
बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंshukriya sir
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